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सुना था कभी बचपन में "खुदी को कर इतना बुलंद बन्दे, की हर तकदीर से पहले, खुदा तुझ से पूछे बोल तेरी रजा क्या है" जो लोग सफलता पाने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं ये लाइनें उन पर फिट बैठती हैं. खुद को उसी धारा से जोड़कर चल पड़े हैं, अभी रास्ते में हूँ यही कहना ठीक है. सफलता के चरम को पा सकेंगे ये जुनून है दिल में, अभी इन्तजार है सही वक्त का. जब स्थितियां अनुकूल न हों, तो सही वक्त का इंतजार करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। मुश्किल वक्त का प्रयोग खुद को मजबूत करने में करना चाहिए। स्लो-डाउन से तो लगभग सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, मेरा ये ब्लॉग एक कोशिश है, खुद को, अपने विचारो को दूसरों से विनिमय करने की. आपकी आलोचना भी सह सकता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की हमारे प्यारे आलोचक भी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, प्रेरणा देने के लिए बस जरूरत है लेख के धरातल पर टिप्पणी नामक अंगूठा लगाने की. इसी उम्मीद के साथ आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.....

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

नहीं रही शुद्ध खाद्य पदार्थों की गारंटी


भोजन बना हमारा दुश्म

अधिक मुनाफा कमाने के लिए खाने-पीने की चीजों में मिलावट करना अब आम हो गया है। एक तरफ महंगाई बढ़ रही है और दूसरी ओर मिलावट रहित संतुलित और स्वास्थ्यप्रद भोजन मिल पाना मुश्किल होता जा रहा है।  स्थिति यह हो गयी है कि हम जिस वस्तु को देखते हैं वही नकली या मिलावटी लगती है। आपका भोजन धीमे जहर में बदल रहा है। फलों से सब्जियों तक, दूध से लेकर कोल्ड ड्रिंक, घी, खाद्य तेल, आटा, दाल और मसालों से मिठाई तक जो भी आप खा रहे हैं, इसकी पूरी आशंका है कि उसमें जहर है। बाजार से आप जो भी खाद्य पदार्थ खरीदते हैं वे लगभग सभी मिलावटी हैं। भोजन हमारा दुश्मन बन गया है।  शुद्घ खाद्य पदार्थों की कोई गारंटी नहीं रही।
करोड़ों रुपए के मिलावट के कारोबार के पनपने की वजह बेहतर निगरानी प्रणाली का न होना और कुछ  हद तक लोगों का सस्ती चीजों के प्रति झुकाव होना भी है।  दरअसल, मिलावट का धंधा पहले से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त में इसमें निश्चित तौर पर तेजी आई है। पिछले कुछ वक्त में इस तरह के ज्यादा मामले सामने आने की वजह सरकार की सख्ती और महंगाई का बढऩा भी है। हालांकि दैनिक उपभोग में आने वाले पदार्थों की कीमतों में जारी उछाल की वजह से भी इस तरह के कारोबार में पिछले कुछ वक्त में तेजी आई है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं में की जाने वाली मिलावट की जांच सक्षम प्रयोगशाला में ही की जा सकती है और जांच के लिए सक्षम प्रयोगशालाओं का हमारे यहां अभाव है। मिलावट की जांच करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय नहीं रहते। सरकार जनता के हित में विज्ञापन अभियान चलाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जोर-शोर से अभियान चलाकर मिलावटखोरों को पकड़ा जाए और उन्हें त्वरित निर्णय लेर कड़ी सजा दी जाए। इस सजा और सजा पाने वालों के बारे में संचार माध्यमों के द्वारा लोगों को जानकारी भी दी जाए।
खाद्य पदार्थ में मिलावट करने के कारोबार की रफ्तार पकडऩे की वजह पिछले कुछ वक्त से दूध, घी और दूसरी कुछ जरूरी चीजों की सप्लाई में कमी और मांग का ज्यादा होना है।  बिस्कुट और दूसरे उत्पादों में भी मिलावट के मामले सामने आते रहे हैं। मसलन बटर बिस्कुट में घटिया चर्बी मिलाने के मामले सामने आए हैं। इसी तरह से हींग पाउडर में चावल का पाउडर, काली मिर्च पाउडर में गेहूं का आटा,  सूरजमुखी के तेल में सस्ता सोयाबीन का तेल और सरसों में इससे मिलते-जुलते बीज मिलाने का धंधा चल रहा है।
आटा, मावा, घी, दूध, मक्खन, खाद्य तेल, चाय, साबुत व पिसे मसाले, दालें आदि तमाम वस्तुएं ऐसी हैं जिनमें जमकर मिलावट की जाती है। कुछ खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच घर पर ही आसानी से की जा सकती है। 
पीढिय़ों से सोने से पहले एक गिलास दूध पीने की परंपरा चल रही है। आप हमेशा सोचते होंगे कि इससे आपके शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं, किंतु अनेक वर्षों से सुनने में आ रहा है कि दूध में सिंथेटिक तत्वों की मिलावट हो रही है, जिनमें यूरिया, डिटरजेंट और खाद्य तेल शामिल हैं। दूध: पानी मिले दूध का आसानी से पता दूध में उंगली डुबाकर बाहर निकालने से लग जाता है। पक्के फर्श पर दूध की 1-2 बूंदें गिराकर देखें, इससे भी दूध में पानी की मिलावट का अनुमान हो जाता है। सिंथेटिक या नकली दूध की जांच सक्षम प्रयोगशाला में की जा सकती है। वैसे ऐसे दूध को गर्म करने के बाद उसमें कुछ पीलापन दिखाई देने लगता है।
न·ली मावा यानी खोया आए दिन पकड़ा जा रहा है। नकली या सिंथेटिक मावा अपेक्षाकृत अधिक सफेद होता है। हाथ में लेकर उंगलियों और अंगूठे से मसलने पर यह पूरी तरह बिखर जाता है जबकि असली मावा बहुत कम बिखरता है और कुछ रुई की बली जैसा हो जाता है। नकली मावा बनाने के लिए स्वादानुसार दूध पाउडर, आवश्यकता अनुसार चावल का आटा, मिश्रण बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार दूध तथा बने हुए मिश्रण को चिकनाई युक्त बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार रिफाइंड ऑयल मिला दिया जाता है। बने हुए मिश्रण को हल्की आग पर भूनने पर तैयार  हो जाता है नकली मावा।
लाल मिर्च:
 खुली पिसी लाल मिर्च न खरीदें। साबुत लाल मिर्च को चम·दार लाल रंग देने के लिए रोहडमिन बी नाम· रसायन का उपयोग किया जाता है। इसकी जांच करने के लिए पैराफिन द्रव में डुबोया रुई का फाहा मिर्च पर रगडऩे पर यदि फाहा लाल हो जाए तो यानि यहां रसायन मौजूद है।
काली मिर्च:
 पपीते के सूखे बीजों की काली मिर्च में खूब मिलावट की जाती है। एक कांच के गिलास में पानी लेकर उसमें खरीदी हुई काली मिर्च डालें। गिलास में पपीते के बीज पानी के ऊपर तैरने लगेंगे और काली मिर्च नीचे तल में बैठ जाएगी।
देसी घी:
वनस्पति घी की मिलावट देसी घी में खूब की जाती है। साथ ही पशु चर्बी की मिलावट और सिंथेटिक दूध से बने घी के मामले भी कई बार सामने आते हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि जो देसी घी आप खरीद रहे हैं वह मिलावटी हो। अच्छी कीमत अदा करने के बाद भी आपको पोषक तत्व के बजाय जानवरों की चर्बी, हड्डियों का चूरा और खनिज तेल मिलता है। जो लोग देसी घी का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं उनके लिए वनस्पति में भी मिलावट की जा रही है। इसमें स्टेरिन की मिलावट होती है, जो साबुन के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पाम आयल का सह उत्पाद है। हरियाणा के पानीपत से पिछले दिनों खबर आई थी कि वहां से पुलिस ने तीन हजार किलोग्राम मिलावटी घी बरामद किया है। उत्तर प्रदेश के एटा, आगरा सहित कई अन्य शहरों में भी 2009 में प्रशासनिक छापेमार कार्रवाई की गई थी। इन छापेमारी में कई ब्रांडेड कंपनियों के नमूने जांच के लिए लिया गया था। जिनकी जांच प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इस प्रकार की घी उत्पादन की इकाइयां पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में जगह-जगह बिखरी हुई हैं। बाजार में बेचा जाने वाला 90 प्रतिशत वनस्पति घी खाद्य मिलावट रोकथाम अधिनियम की शर्तो का उल्लंघन करता है।
देसी घी की करें घर पर जांच
इसमें मिलावट की जांच के लिए सुनारों द्वारा उपयोग किये जाने वाले हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (नमक का तेजाब) का उपयोग किया जाता है। कांच के बरतन में थोड़ा सा घी लेकर उसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की 3-4 बूंदें और चीनी के कुछ दाने डालें और इसे गर्म करें। बरतन का द्रव हल्के लाल रंग का दिखाई दे तो जान लीजिए कि देसी घी मिलावटी है।
 मिलावट इस हद तक है कि मिठाई में इस्तेमाल होने वाले पिस्ते को भी बख्शा नहीं जा रहा है। मिलावट करने वाले व्यापारी घटिया क्वालिटी के मूंगफली दानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उन्हें रंग देते हैं। सिंथेटिक दूध भी आम है। इस मामले में भी देश का पश्चिमोत्तर भाग मिलावटी दूध और इससे बने उत्पादों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
प्राय: अधिकांश दुकानदार किसी कारण से अपने ग्राहक को खोना नहीं चाहते सो वे खराब या मिलावटी सामान देने से बचते हैं। इसलिए मिलावट से बचने के लिए विश्वसनीय दुकान से ही नियमित रूप से खरीदारी करनी चाहिए। मिलावटी और नकली सामान दुकानदार को अपेक्षाकृत अधिक मुनाफा देता है अत: उसे मिलावटी सामान के बारे में अक्सर पूरी जानकारी होती है। अच्छी गुणवत्ता का सामान खरीदने के लिए उस पर अंकित एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहारी पदार्थ आदि के चिह्न अवश्य देखने चाहिए और ऐसे ही सामान की दुकानदार से मांग करनी चाहिए। सरकार की ओर से भी समय-समय पर उपभोक्तओं  के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाते हैं। मिलावट की शिकायत करने के लिए सम्बन्धित कार्यालयों और अधिकारियों के बारे में जानकारी भी दी जाती है। यदि आपको लगता है कि आपके साथ धोखा हुआ है या किसी खाद्य पदार्थ में मिलावट की आषंका है तो शिकायत की जा सकती है। कोशिश यही करें कि गरम मसाला और हल्दी, मिर्च, धनिया आदि जैसे अन्य मसाले साबुत ही खरीदें। इन्हें आवश्य·तानुसार धो-सुखा·र घर पर ही कूट-पीसकर तैयार करें। इस तरह तैयार किये गये मसाले शुद्घ, ताजा और स्वास्थ्यप्रद होंगे। इस काम में अधिक मेहनत और समय भी जरूरत नहीं, बस जरा आदत बदलने की जरूरत है। अपने स्वास्थ्य की खातिर आज इस बात की अधिक जरूरत है कि मिलावट के प्रति जागरूक रहकर मिलावट से यथासम्भव बचा जाए। वस्तुओं की पैकिंग पर उसके पैक करने और उपयोग की अवधि के बारे में दी गयी जानकारी पढऩे का भी ध्यान रखना चाहिए। खुले मसाले बेचने पर रोक के बावजूद ये धड़ल्ले से बिकते हैं। आप इन्हें न खरीदें। खाद्य सामग्री खरीदते समय उस पर एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहार आदि के मोनोग्राम अवश्य देखें। विभिन्न वस्तुओ के विज्ञापनों में किये गये दावों-वायदों से भ्रमित न हों। एक जागरूक उपभोक्ता बन आवष्यक जांच-परख करें और हर वस्तु की रसीद अवष्य लें।


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नहीं रही शुद्ध खाद्य पदार्थों की गारंटी


भोजन बना हमारा दुश्म

अधिक मुनाफा कमाने के लिए खाने-पीने की चीजों में मिलावट करना अब आम हो गया है। एक तरफ महंगाई बढ़ रही है और दूसरी ओर मिलावट रहित संतुलित और स्वास्थ्यप्रद भोजन मिल पाना मुश्किल होता जा रहा है।  स्थिति यह हो गयी है कि हम जिस वस्तु को देखते हैं वही नकली या मिलावटी लगती है। आपका भोजन धीमे जहर में बदल रहा है। फलों से सब्जियों तक, दूध से लेकर कोल्ड ड्रिंक, घी, खाद्य तेल, आटा, दाल और मसालों से मिठाई तक जो भी आप खा रहे हैं, इसकी पूरी आशंका है कि उसमें जहर है। बाजार से आप जो भी खाद्य पदार्थ खरीदते हैं वे लगभग सभी मिलावटी हैं। भोजन हमारा दुश्मन बन गया है।  शुद्घ खाद्य पदार्थों की कोई गारंटी नहीं रही।
करोड़ों रुपए के मिलावट के कारोबार के पनपने की वजह बेहतर निगरानी प्रणाली का न होना और कुछ  हद तक लोगों का सस्ती चीजों के प्रति झुकाव होना भी है।  दरअसल, मिलावट का धंधा पहले से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त में इसमें निश्चित तौर पर तेजी आई है। पिछले कुछ वक्त में इस तरह के ज्यादा मामले सामने आने की वजह सरकार की सख्ती और महंगाई का बढऩा भी है। हालांकि दैनिक उपभोग में आने वाले पदार्थों की कीमतों में जारी उछाल की वजह से भी इस तरह के कारोबार में पिछले कुछ वक्त में तेजी आई है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं में की जाने वाली मिलावट की जांच सक्षम प्रयोगशाला में ही की जा सकती है और जांच के लिए सक्षम प्रयोगशालाओं का हमारे यहां अभाव है। मिलावट की जांच करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय नहीं रहते। सरकार जनता के हित में विज्ञापन अभियान चलाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जोर-शोर से अभियान चलाकर मिलावटखोरों को पकड़ा जाए और उन्हें त्वरित निर्णय लेर कड़ी सजा दी जाए। इस सजा और सजा पाने वालों के बारे में संचार माध्यमों के द्वारा लोगों को जानकारी भी दी जाए।
खाद्य पदार्थ में मिलावट करने के कारोबार की रफ्तार पकडऩे की वजह पिछले कुछ वक्त से दूध, घी और दूसरी कुछ जरूरी चीजों की सप्लाई में कमी और मांग का ज्यादा होना है।  बिस्कुट और दूसरे उत्पादों में भी मिलावट के मामले सामने आते रहे हैं। मसलन बटर बिस्कुट में घटिया चर्बी मिलाने के मामले सामने आए हैं। इसी तरह से हींग पाउडर में चावल का पाउडर, काली मिर्च पाउडर में गेहूं का आटा,  सूरजमुखी के तेल में सस्ता सोयाबीन का तेल और सरसों में इससे मिलते-जुलते बीज मिलाने का धंधा चल रहा है।
आटा, मावा, घी, दूध, मक्खन, खाद्य तेल, चाय, साबुत व पिसे मसाले, दालें आदि तमाम वस्तुएं ऐसी हैं जिनमें जमकर मिलावट की जाती है। कुछ खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच घर पर ही आसानी से की जा सकती है। 
पीढिय़ों से सोने से पहले एक गिलास दूध पीने की परंपरा चल रही है। आप हमेशा सोचते होंगे कि इससे आपके शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं, किंतु अनेक वर्षों से सुनने में आ रहा है कि दूध में सिंथेटिक तत्वों की मिलावट हो रही है, जिनमें यूरिया, डिटरजेंट और खाद्य तेल शामिल हैं। दूध: पानी मिले दूध का आसानी से पता दूध में उंगली डुबाकर बाहर निकालने से लग जाता है। पक्के फर्श पर दूध की 1-2 बूंदें गिराकर देखें, इससे भी दूध में पानी की मिलावट का अनुमान हो जाता है। सिंथेटिक या नकली दूध की जांच सक्षम प्रयोगशाला में की जा सकती है। वैसे ऐसे दूध को गर्म करने के बाद उसमें कुछ पीलापन दिखाई देने लगता है।
न·ली मावा यानी खोया आए दिन पकड़ा जा रहा है। नकली या सिंथेटिक मावा अपेक्षाकृत अधिक सफेद होता है। हाथ में लेकर उंगलियों और अंगूठे से मसलने पर यह पूरी तरह बिखर जाता है जबकि असली मावा बहुत कम बिखरता है और कुछ रुई की बली जैसा हो जाता है। नकली मावा बनाने के लिए स्वादानुसार दूध पाउडर, आवश्यकता अनुसार चावल का आटा, मिश्रण बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार दूध तथा बने हुए मिश्रण को चिकनाई युक्त बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार रिफाइंड ऑयल मिला दिया जाता है। बने हुए मिश्रण को हल्की आग पर भूनने पर तैयार  हो जाता है नकली मावा।
लाल मिर्च:
 खुली पिसी लाल मिर्च न खरीदें। साबुत लाल मिर्च को चम·दार लाल रंग देने के लिए रोहडमिन बी नाम· रसायन का उपयोग किया जाता है। इसकी जांच करने के लिए पैराफिन द्रव में डुबोया रुई का फाहा मिर्च पर रगडऩे पर यदि फाहा लाल हो जाए तो यानि यहां रसायन मौजूद है।
काली मिर्च:
 पपीते के सूखे बीजों की काली मिर्च में खूब मिलावट की जाती है। एक कांच के गिलास में पानी लेकर उसमें खरीदी हुई काली मिर्च डालें। गिलास में पपीते के बीज पानी के ऊपर तैरने लगेंगे और काली मिर्च नीचे तल में बैठ जाएगी।
देसी घी:
वनस्पति घी की मिलावट देसी घी में खूब की जाती है। साथ ही पशु चर्बी की मिलावट और सिंथेटिक दूध से बने घी के मामले भी कई बार सामने आते हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि जो देसी घी आप खरीद रहे हैं वह मिलावटी हो। अच्छी कीमत अदा करने के बाद भी आपको पोषक तत्व के बजाय जानवरों की चर्बी, हड्डियों का चूरा और खनिज तेल मिलता है। जो लोग देसी घी का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं उनके लिए वनस्पति में भी मिलावट की जा रही है। इसमें स्टेरिन की मिलावट होती है, जो साबुन के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पाम आयल का सह उत्पाद है। हरियाणा के पानीपत से पिछले दिनों खबर आई थी कि वहां से पुलिस ने तीन हजार किलोग्राम मिलावटी घी बरामद किया है। उत्तर प्रदेश के एटा, आगरा सहित कई अन्य शहरों में भी 2009 में प्रशासनिक छापेमार कार्रवाई की गई थी। इन छापेमारी में कई ब्रांडेड कंपनियों के नमूने जांच के लिए लिया गया था। जिनकी जांच प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इस प्रकार की घी उत्पादन की इकाइयां पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में जगह-जगह बिखरी हुई हैं। बाजार में बेचा जाने वाला 90 प्रतिशत वनस्पति घी खाद्य मिलावट रोकथाम अधिनियम की शर्तो का उल्लंघन करता है।
देसी घी की करें घर पर जांच
इसमें मिलावट की जांच के लिए सुनारों द्वारा उपयोग किये जाने वाले हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (नमक का तेजाब) का उपयोग किया जाता है। कांच के बरतन में थोड़ा सा घी लेकर उसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की 3-4 बूंदें और चीनी के कुछ दाने डालें और इसे गर्म करें। बरतन का द्रव हल्के लाल रंग का दिखाई दे तो जान लीजिए कि देसी घी मिलावटी है।
 मिलावट इस हद तक है कि मिठाई में इस्तेमाल होने वाले पिस्ते को भी बख्शा नहीं जा रहा है। मिलावट करने वाले व्यापारी घटिया क्वालिटी के मूंगफली दानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उन्हें रंग देते हैं। सिंथेटिक दूध भी आम है। इस मामले में भी देश का पश्चिमोत्तर भाग मिलावटी दूध और इससे बने उत्पादों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
प्राय: अधिकांश दुकानदार किसी कारण से अपने ग्राहक को खोना नहीं चाहते सो वे खराब या मिलावटी सामान देने से बचते हैं। इसलिए मिलावट से बचने के लिए विश्वसनीय दुकान से ही नियमित रूप से खरीदारी करनी चाहिए। मिलावटी और नकली सामान दुकानदार को अपेक्षाकृत अधिक मुनाफा देता है अत: उसे मिलावटी सामान के बारे में अक्सर पूरी जानकारी होती है। अच्छी गुणवत्ता का सामान खरीदने के लिए उस पर अंकित एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहारी पदार्थ आदि के चिह्न अवश्य देखने चाहिए और ऐसे ही सामान की दुकानदार से मांग करनी चाहिए। सरकार की ओर से भी समय-समय पर उपभोक्तओं  के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाते हैं। मिलावट की शिकायत करने के लिए सम्बन्धित कार्यालयों और अधिकारियों के बारे में जानकारी भी दी जाती है। यदि आपको लगता है कि आपके साथ धोखा हुआ है या किसी खाद्य पदार्थ में मिलावट की आषंका है तो शिकायत की जा सकती है। कोशिश यही करें कि गरम मसाला और हल्दी, मिर्च, धनिया आदि जैसे अन्य मसाले साबुत ही खरीदें। इन्हें आवश्य·तानुसार धो-सुखा·र घर पर ही कूट-पीसकर तैयार करें। इस तरह तैयार किये गये मसाले शुद्घ, ताजा और स्वास्थ्यप्रद होंगे। इस काम में अधिक मेहनत और समय भी जरूरत नहीं, बस जरा आदत बदलने की जरूरत है। अपने स्वास्थ्य की खातिर आज इस बात की अधिक जरूरत है कि मिलावट के प्रति जागरूक रहकर मिलावट से यथासम्भव बचा जाए। वस्तुओं की पैकिंग पर उसके पैक करने और उपयोग की अवधि के बारे में दी गयी जानकारी पढऩे का भी ध्यान रखना चाहिए। खुले मसाले बेचने पर रोक के बावजूद ये धड़ल्ले से बिकते हैं। आप इन्हें न खरीदें। खाद्य सामग्री खरीदते समय उस पर एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहार आदि के मोनोग्राम अवश्य देखें। विभिन्न वस्तुओ के विज्ञापनों में किये गये दावों-वायदों से भ्रमित न हों। एक जागरूक उपभोक्ता बन आवष्यक जांच-परख करें और हर वस्तु की रसीद अवष्य लें।


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