मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है


सुना था कभी बचपन में "खुदी को कर इतना बुलंद बन्दे, की हर तकदीर से पहले, खुदा तुझ से पूछे बोल तेरी रजा क्या है" जो लोग सफलता पाने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं ये लाइनें उन पर फिट बैठती हैं. खुद को उसी धारा से जोड़कर चल पड़े हैं, अभी रास्ते में हूँ यही कहना ठीक है. सफलता के चरम को पा सकेंगे ये जुनून है दिल में, अभी इन्तजार है सही वक्त का. जब स्थितियां अनुकूल न हों, तो सही वक्त का इंतजार करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। मुश्किल वक्त का प्रयोग खुद को मजबूत करने में करना चाहिए। स्लो-डाउन से तो लगभग सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, मेरा ये ब्लॉग एक कोशिश है, खुद को, अपने विचारो को दूसरों से विनिमय करने की. आपकी आलोचना भी सह सकता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की हमारे प्यारे आलोचक भी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, प्रेरणा देने के लिए बस जरूरत है लेख के धरातल पर टिप्पणी नामक अंगूठा लगाने की. इसी उम्मीद के साथ आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.....

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

आओ संकल्प लें नशामुक्ति का

राब को कहें "ना"  

आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय युवाओं में बढ़ रही नशाखोरी की प्रवृत्ति है। आज हमें ये नज़ारा किसी भी स्कूल के बाहर देखने को आसानी से मिल सकता है कि कम उम्र के किशोर बच्चे सिगरेट पीते, तम्बाकू मिश्रित पान मासाल खाकर किस तरह खुद को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं बच्चों को घरों में माता-पिता से समय के अभाव के कारण बात करने का मौका नहीं मिलता और स्कूलों में पढ़ाई का बोझ किसी को भी इस ओर सोचने की फुर्सत ही नहीं देता। भारी-भरकम पढाई का दबाव, परीक्षा, अंकों और डिवीजन की दौड़ में चाहे-अनचाहे व्यक्तित्व के विकास की बहुत सी समस्याएं अनसुलझी रह जाती हैं। यह दबाव निराशा, भावनात्मक कमजोरियों, अपराधों के रूप में फूटता है जिसकी वजह से युवाओं में नशाखोरी, आत्महत्या जैसे अपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं। कुछ किशोर और युवा तो इनका सेवन सिर्फ इसलिए करना सीख जाते हैं क्योंकि उनके दोस्त नशे के आदि हैं
          आज के माहौल में शराब, तम्बाकू इत्यादि का प्रचलन बढ़ गया है। नशा करना आज के दौर में ऊँची हैसियत व विलासिता दर्शाने का प्रतीक बन गया है। नई पीढ़ी का मानव दिखावे मात्र के लिए इनका सेवन आरम्भ करता है पर अंतत: इनका दास बन जाता है। नशे का सेवन करने मात्र से एक ओर यह हमारी जेब पर तो असर डालता ही है दूसरी ओर यह वस्तुएं व्यक्ति को शारीरिक रूप से जर्जर करने के साथ उनकी मानसिकता पर भी विपरीत प्रभाव डालती हैं। इनका सेवन करने वाला व्यक्ति भयावह बीमारियों कि जकड़ में आने के साथ साथ कुंठित मानसिकता, कमजोर इच्छाशक्ति व नकारात्मक सोच से त्रस्त रहता है। शराब पीने से दिल की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। शराब का सेवन ब्लड प्रेशर बढ़ाने और मोटापे के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए शराब से परहेज रखें। इनके प्रभाव में आने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य तथा सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह नितांत आवश्य हो जाता है कि व्यक्ति ना सिर्फ इनसे बल्कि इनके प्रभाव से भी बचने कि कोशिश करे। एक शिक्षक, अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि यह और विकराल रूप ले, इसे ख़त्म करने में पहल करनी चाहिए।
          ब्रितानी शोधकर्ताओं के अनुसार शराब अल्कोहल हेरोइन और क्रेक कोकीन जैसे मादक पदार्थों से भी कहीं ज्यादा नुकसानदेह है। इंडीपेंडेंट साइंटिफिक कमेटी आन ड्रग्स (आईएससीडी) के अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने दोनों तरह के नशे के खतरों पर गौर किया और पाया कि सामाजिक कारकों के लिहाज से अल्कोहल सबसे ज्यादा खतरनाक है. यह निष्कर्ष लंबे समय से चली आ रही इस धारणा के विपरीत है कि मादक पदार्थ सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि मादक पदार्थोंकी मौजूदा संरचना से नुकसान पहुंच सकने के बहुत कम प्रमाण मिलते हैं। 
         न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंस के डॉक्टर डॉन सवाजे के अनुसार गर्भावस्था के दौरान शराब पीने से होने वाले बच्चों को मिरगी की समस्या तो हो ही सकती है साथ ही और भी कई तरह की समस्या हो सकती है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, शोधकर्त्ताओं और डॉक्टरों का मानना है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शराब से दूर रहना चाहिए।
          शराब की बिक्री से सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन वही सरकार यह भी तो सोचे कि इस शराब ने कितने घर बरबाद कर दिए हैं। शराब ने हमारे कई नौजवानों को आज बरबादी की ओर धकेल दिया है। शराब की लत लगने पर शराब के लिए इंसान घर के गहने, बर्तन तक बेच देता है। पूरे घर को बरबादी की ओर धकेल देता है। राज्य का विकास राज्य के नौजवानों से व राज्य की जनता के विकास से होता है। शराब इंसान की उन्नति की बाधक है। फिर ऐसे में राज्य प्रगति कैसे कर सकता है।
दस वर्षों से नशामुक्त है मोहनगांव
         एक समाचार पत्र के अनुसार शराब की सामाजिक बुराई के खिलाफ छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के ग्राम मोहगांव ने देश और दुनिया के सामने एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। नशा बंदी की दृष्टि से मोहगांव छत्तीसगढ़ का एक आदर्श गांव साबित हो रहा है। लगभग दस साल पहले वहां शराब के कारण अक्सर होने वाले लड़ाई-झगड़ों से तंग आकर गांव के लोग स्व-प्रेरणा से संगठित हुए और पूरे गांव में नशा बंदी लागू करने का निर्णय लिया।
           उनका यह फैसला आज दस साल बाद भी पूरी कामयाबी के साथ कायम है। अब वहां सामाजिक सद्भावना के साथ सुख-शांति का वातावरण है। लगभग आठ सौ की आबादी वाला मोहगांव विकासखंड बम्हनीडीह के अन्तर्गत ग्राम पंचायत झर्रा का आश्रित गांव है। ग्राम पंचायत झर्रा के सरपंच श्री चन्द्रमणि सूर्यवंशी ने अनुसार गांव में शराब के अलावा बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा जैसे नशीले पदार्थों पर भी ग्रामीणों ने स्वयं होकर पाबंदी लगा रखी है।            कुछ वर्ष पहले तक गांव में किसी भी प्रकार की नशा खोरी करके आने वाले व्यक्तियों पर सामाजिक जुर्माना लगाया जाता था, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ती। गांव के लोग स्वयं नशे से दूर रहते हैं और दूसरों को भी इसकी नसीहत देते हैं। वे अपने जवान होते बच्चों को भी नशे की बुराईयों और उसके दुष्परिणामों की जानकारी देकर इससे बचे रहने की सलाह देते हैं। नई पीढ़ी भी अपने बड़े-बुजुर्गों की सलाह पर गंभीरता से अमल कर रही है। सरपंच श्री सूयर्वंशी ने यह भी बताया कि मोहगांव के लोगों से प्रेरण् लेकर ग्राम पंचायत झिर्रा के अन्य आश्रित गांवों के लोग भी शराब बंदी और नशाबंदी के लिए संगठित हो रहे हैं। बहुत जल्द सम्पूर्ण ग्राम पंचायत को नशामुक्त ग्राम पंचायत के रूप में एक नई पहचान मिलगी।
     
                                                                                                                                     जारी है ...............

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

आओ संकल्प लें नशामुक्ति का

राब को कहें "ना"  

आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय युवाओं में बढ़ रही नशाखोरी की प्रवृत्ति है। आज हमें ये नज़ारा किसी भी स्कूल के बाहर देखने को आसानी से मिल सकता है कि कम उम्र के किशोर बच्चे सिगरेट पीते, तम्बाकू मिश्रित पान मासाल खाकर किस तरह खुद को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं बच्चों को घरों में माता-पिता से समय के अभाव के कारण बात करने का मौका नहीं मिलता और स्कूलों में पढ़ाई का बोझ किसी को भी इस ओर सोचने की फुर्सत ही नहीं देता। भारी-भरकम पढाई का दबाव, परीक्षा, अंकों और डिवीजन की दौड़ में चाहे-अनचाहे व्यक्तित्व के विकास की बहुत सी समस्याएं अनसुलझी रह जाती हैं। यह दबाव निराशा, भावनात्मक कमजोरियों, अपराधों के रूप में फूटता है जिसकी वजह से युवाओं में नशाखोरी, आत्महत्या जैसे अपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं। कुछ किशोर और युवा तो इनका सेवन सिर्फ इसलिए करना सीख जाते हैं क्योंकि उनके दोस्त नशे के आदि हैं
          आज के माहौल में शराब, तम्बाकू इत्यादि का प्रचलन बढ़ गया है। नशा करना आज के दौर में ऊँची हैसियत व विलासिता दर्शाने का प्रतीक बन गया है। नई पीढ़ी का मानव दिखावे मात्र के लिए इनका सेवन आरम्भ करता है पर अंतत: इनका दास बन जाता है। नशे का सेवन करने मात्र से एक ओर यह हमारी जेब पर तो असर डालता ही है दूसरी ओर यह वस्तुएं व्यक्ति को शारीरिक रूप से जर्जर करने के साथ उनकी मानसिकता पर भी विपरीत प्रभाव डालती हैं। इनका सेवन करने वाला व्यक्ति भयावह बीमारियों कि जकड़ में आने के साथ साथ कुंठित मानसिकता, कमजोर इच्छाशक्ति व नकारात्मक सोच से त्रस्त रहता है। शराब पीने से दिल की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। शराब का सेवन ब्लड प्रेशर बढ़ाने और मोटापे के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए शराब से परहेज रखें। इनके प्रभाव में आने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य तथा सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह नितांत आवश्य हो जाता है कि व्यक्ति ना सिर्फ इनसे बल्कि इनके प्रभाव से भी बचने कि कोशिश करे। एक शिक्षक, अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि यह और विकराल रूप ले, इसे ख़त्म करने में पहल करनी चाहिए।
          ब्रितानी शोधकर्ताओं के अनुसार शराब अल्कोहल हेरोइन और क्रेक कोकीन जैसे मादक पदार्थों से भी कहीं ज्यादा नुकसानदेह है। इंडीपेंडेंट साइंटिफिक कमेटी आन ड्रग्स (आईएससीडी) के अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने दोनों तरह के नशे के खतरों पर गौर किया और पाया कि सामाजिक कारकों के लिहाज से अल्कोहल सबसे ज्यादा खतरनाक है. यह निष्कर्ष लंबे समय से चली आ रही इस धारणा के विपरीत है कि मादक पदार्थ सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि मादक पदार्थोंकी मौजूदा संरचना से नुकसान पहुंच सकने के बहुत कम प्रमाण मिलते हैं। 
         न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंस के डॉक्टर डॉन सवाजे के अनुसार गर्भावस्था के दौरान शराब पीने से होने वाले बच्चों को मिरगी की समस्या तो हो ही सकती है साथ ही और भी कई तरह की समस्या हो सकती है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, शोधकर्त्ताओं और डॉक्टरों का मानना है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शराब से दूर रहना चाहिए।
          शराब की बिक्री से सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन वही सरकार यह भी तो सोचे कि इस शराब ने कितने घर बरबाद कर दिए हैं। शराब ने हमारे कई नौजवानों को आज बरबादी की ओर धकेल दिया है। शराब की लत लगने पर शराब के लिए इंसान घर के गहने, बर्तन तक बेच देता है। पूरे घर को बरबादी की ओर धकेल देता है। राज्य का विकास राज्य के नौजवानों से व राज्य की जनता के विकास से होता है। शराब इंसान की उन्नति की बाधक है। फिर ऐसे में राज्य प्रगति कैसे कर सकता है।
दस वर्षों से नशामुक्त है मोहनगांव
         एक समाचार पत्र के अनुसार शराब की सामाजिक बुराई के खिलाफ छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के ग्राम मोहगांव ने देश और दुनिया के सामने एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। नशा बंदी की दृष्टि से मोहगांव छत्तीसगढ़ का एक आदर्श गांव साबित हो रहा है। लगभग दस साल पहले वहां शराब के कारण अक्सर होने वाले लड़ाई-झगड़ों से तंग आकर गांव के लोग स्व-प्रेरणा से संगठित हुए और पूरे गांव में नशा बंदी लागू करने का निर्णय लिया।
           उनका यह फैसला आज दस साल बाद भी पूरी कामयाबी के साथ कायम है। अब वहां सामाजिक सद्भावना के साथ सुख-शांति का वातावरण है। लगभग आठ सौ की आबादी वाला मोहगांव विकासखंड बम्हनीडीह के अन्तर्गत ग्राम पंचायत झर्रा का आश्रित गांव है। ग्राम पंचायत झर्रा के सरपंच श्री चन्द्रमणि सूर्यवंशी ने अनुसार गांव में शराब के अलावा बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा जैसे नशीले पदार्थों पर भी ग्रामीणों ने स्वयं होकर पाबंदी लगा रखी है।            कुछ वर्ष पहले तक गांव में किसी भी प्रकार की नशा खोरी करके आने वाले व्यक्तियों पर सामाजिक जुर्माना लगाया जाता था, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ती। गांव के लोग स्वयं नशे से दूर रहते हैं और दूसरों को भी इसकी नसीहत देते हैं। वे अपने जवान होते बच्चों को भी नशे की बुराईयों और उसके दुष्परिणामों की जानकारी देकर इससे बचे रहने की सलाह देते हैं। नई पीढ़ी भी अपने बड़े-बुजुर्गों की सलाह पर गंभीरता से अमल कर रही है। सरपंच श्री सूयर्वंशी ने यह भी बताया कि मोहगांव के लोगों से प्रेरण् लेकर ग्राम पंचायत झिर्रा के अन्य आश्रित गांवों के लोग भी शराब बंदी और नशाबंदी के लिए संगठित हो रहे हैं। बहुत जल्द सम्पूर्ण ग्राम पंचायत को नशामुक्त ग्राम पंचायत के रूप में एक नई पहचान मिलगी।
     
                                                                                                                                     जारी है ...............