मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है


सुना था कभी बचपन में "खुदी को कर इतना बुलंद बन्दे, की हर तकदीर से पहले, खुदा तुझ से पूछे बोल तेरी रजा क्या है" जो लोग सफलता पाने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं ये लाइनें उन पर फिट बैठती हैं. खुद को उसी धारा से जोड़कर चल पड़े हैं, अभी रास्ते में हूँ यही कहना ठीक है. सफलता के चरम को पा सकेंगे ये जुनून है दिल में, अभी इन्तजार है सही वक्त का. जब स्थितियां अनुकूल न हों, तो सही वक्त का इंतजार करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। मुश्किल वक्त का प्रयोग खुद को मजबूत करने में करना चाहिए। स्लो-डाउन से तो लगभग सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, मेरा ये ब्लॉग एक कोशिश है, खुद को, अपने विचारो को दूसरों से विनिमय करने की. आपकी आलोचना भी सह सकता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की हमारे प्यारे आलोचक भी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, प्रेरणा देने के लिए बस जरूरत है लेख के धरातल पर टिप्पणी नामक अंगूठा लगाने की. इसी उम्मीद के साथ आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.....

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

विकलांग वर्ष और बेरोजगारी

सुबह १० बजे का वक्त था. यह आगरा का वह व्यस्ततम  चौराहा था जहाँ ऑफिस टाइम होने की वजह से ट्रैफिक अपने पूरे यौवन पर होता है. भागमभाग और आपाधापी से भरी जिन्दगी से जूझ रहे राहगीर अपनी धुन में मंजिल की तरफ दौड़े चले जा रहे थे. तेज गति से आते वाहन जोर जोर से होर्न बजा रहे थे. ऐसे शोरगुल के माहौल से मैं भी जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था. तभी सामने से आ रही कार सवार ने मेरे आगे चल रहे युवक को एक जोरदार टक्कर टक्कर मार दी. यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की मैं भी उस युवक को बचने की कोशिश नहीं कर सका था. युवक सड़क पर गिरकर दर्द से तड़पने की बजाये मुस्कुरा रहा था. इस नज़ारे को देखने वाली भीड़ ने कार का रास्ता रोक रखा था. मजबूरीवश कार चालक को गाड़ी से उतरना पड़ा. घायल युवक ने कार वाले की तरफ देखा मुस्कुराते हुए उससे मुखातिब हुआ और कहने लगा "सर प्लीज! मुझे आप अस्पताल तक छोड़ आयें, पिछले कई वर्षों से बेरोजगार था, अब आपने मेरी तंग तोड़कर जो एहसान मुझ पर किया है तो शायद अब मेरी तकदीर जरूर खुल  जाएगी और इस साल नहीं तो अगले साल 'विकलांग वर्ष' में मेरी नौकरी जरूर लग जाएगी."

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विकलांग वर्ष और बेरोजगारी

सुबह १० बजे का वक्त था. यह आगरा का वह व्यस्ततम  चौराहा था जहाँ ऑफिस टाइम होने की वजह से ट्रैफिक अपने पूरे यौवन पर होता है. भागमभाग और आपाधापी से भरी जिन्दगी से जूझ रहे राहगीर अपनी धुन में मंजिल की तरफ दौड़े चले जा रहे थे. तेज गति से आते वाहन जोर जोर से होर्न बजा रहे थे. ऐसे शोरगुल के माहौल से मैं भी जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था. तभी सामने से आ रही कार सवार ने मेरे आगे चल रहे युवक को एक जोरदार टक्कर टक्कर मार दी. यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की मैं भी उस युवक को बचने की कोशिश नहीं कर सका था. युवक सड़क पर गिरकर दर्द से तड़पने की बजाये मुस्कुरा रहा था. इस नज़ारे को देखने वाली भीड़ ने कार का रास्ता रोक रखा था. मजबूरीवश कार चालक को गाड़ी से उतरना पड़ा. घायल युवक ने कार वाले की तरफ देखा मुस्कुराते हुए उससे मुखातिब हुआ और कहने लगा "सर प्लीज! मुझे आप अस्पताल तक छोड़ आयें, पिछले कई वर्षों से बेरोजगार था, अब आपने मेरी तंग तोड़कर जो एहसान मुझ पर किया है तो शायद अब मेरी तकदीर जरूर खुल  जाएगी और इस साल नहीं तो अगले साल 'विकलांग वर्ष' में मेरी नौकरी जरूर लग जाएगी."

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें