मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है


सुना था कभी बचपन में "खुदी को कर इतना बुलंद बन्दे, की हर तकदीर से पहले, खुदा तुझ से पूछे बोल तेरी रजा क्या है" जो लोग सफलता पाने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं ये लाइनें उन पर फिट बैठती हैं. खुद को उसी धारा से जोड़कर चल पड़े हैं, अभी रास्ते में हूँ यही कहना ठीक है. सफलता के चरम को पा सकेंगे ये जुनून है दिल में, अभी इन्तजार है सही वक्त का. जब स्थितियां अनुकूल न हों, तो सही वक्त का इंतजार करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। मुश्किल वक्त का प्रयोग खुद को मजबूत करने में करना चाहिए। स्लो-डाउन से तो लगभग सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, मेरा ये ब्लॉग एक कोशिश है, खुद को, अपने विचारो को दूसरों से विनिमय करने की. आपकी आलोचना भी सह सकता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की हमारे प्यारे आलोचक भी हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, प्रेरणा देने के लिए बस जरूरत है लेख के धरातल पर टिप्पणी नामक अंगूठा लगाने की. इसी उम्मीद के साथ आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.....

रविवार, 19 दिसंबर 2010

चापलूसी का शोक

आपने देखा हो या नहीं पर मुझे ऐसा देखने का खासा तजुर्बा है आप कह सकते हैं। कई बार देखने में आता रहता है कि किस तरह साधारण, लक्षणहीन, अनाड़ी तथा असभ्य लोग केवल खुशामद करके कोर्इ बड़ा पद पा लेते हैं। ऐसा नहीं कि इन्होंने इस पद को पाने के लिए कोर्इ कसरत नहीं की। अब सवाल यह उठता है कि जब यह लोग साधारण, लक्षणहीन, अनाड़ी तथा असभ्य है तो फिर कैसे इन्हें गरिमामयी पद की प्राप्ति हो जाती है। मान्यवर, इसके पीछे उनकी चापलूसी करने की प्रतिभा छुपी रहती है।
     चलिए अब आपको विस्तार पूर्वक बतलाते हैं अच्छा चापलूस बनने के लिए किन गुणों का होना खासा महत्व रखता है। वैसे तो चापलूसी की कला काफी प्राचीन है। इसकी शुरुआत कब से शुरू हुई यह बताना मेरे लिए काफी कठिन है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि जब से प्रतिस्पर्धा, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ शुरू हुई होगी तथा बिना कुछ किए सब कुछ पाने की तमन्ना इंसान में जागी होगी तभी से इसका जन्म भी हुआ होगा। जनाब! चापलूसी का मतलब है बड़े साहब को प्रसन्न करने के लिए उनकी झूठी प्रशंसा करना, गलत ही सही पर उनकी हर बात पर वाह-वाह करना, अपने स्वार्थ को साधने के लिए दूसरों का अहित करने के लिए झूठी बातें बनाना, मन में मक्कारी छुपाकर मुस्कराहट और मीठी तथा ज्ञानपूर्ण बातों का प्रयोग करना।
     वर्तमान युग में चापलूसी करने में माहिर होना बहुत जरूरी है। अगर आप किसी को तन की शक्ति से हरा नहीं सकते, अर्थात आप दुर्बल हैं, तो आप चापलूसी का सहारा लेकरआसानी से सामने वाले का तीया-पांचा कर सकते हैं। अपना घर चलाने के लिए यह पात्र किसी भी हद दर्जे की हरकत आपके साथ करने से नहीं चूकेगा। जाने कितने घर मात्र चापलूसी करने से ही चल रहे हैं। डिग्रियों वाले और तुजुर्बेकार मुंह की खाते हैं और चापलूस मजे से मक्खन लगाकर पेट भर रहे हैं।
     चापलूसी की मात्रा पुरुषों में कम और स्त्रियों में अधिक पाई जाती है। क्योंकि यह शब्द स्वयं ही स्त्रीलिंग है। ईश्वर भी चापलूस भक्तों से ही खुश रहता है इसलिए बंधुओं चापलूसों से सदा सावधान रहना ही हितकर होता है। 'कर्म ही प्रधान है, बिना कर्म किए आपको सफलता नहीं मिलेगी' ऐसा सोचना भी अब महापाप है। जनाब! चापलूसी करिए मस्त रहिए। ओशो का कहना है कि ह्यजो व्यक्ति आपसे मीठी-मीठी बातें करे समझ लीजिये वह आपके पेट का रस ले रहा है, बोलचाल में मिठास और जीभ कड़वी होती है। अपनी कमियों को छिपाने के लिए चापलूस व्यक्ति अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रशंसा द्वारा दूसरे का अपमान बहुत अच्छी तरह कर सकते हैं। चापलूस व्यक्ति किसी का कहीं भी अपमान कर सकते हैं, दूसरों के कार्य की प्रशंसा करना उनके लिए हिमालय से कूदने के बराबर होता है। मात्र दिखावे की बातें बनाना, तारीफ करनी हो तो मुंह पिचका लेते हैं और यदि किसी ने गलत कार्य किया तो ऊंचा ही बोलेंगे ताकि अन्य लोगों में उनका प्रभाव और छवि साफ-सुथरी बनी रहे, कुल मिलाकर दोस्तों ऐसे लोगों का खुद का कोई चरित्र ही नहीं होता। ऐसे व्यक्ति चापलूस होते हुए भी कभी ये मानने को तैयार नहीं होते कि वह चापलूस हैं।
     जब इतनी सारी खूबियों से भरपूर है यह चापलूसी तो फिर इसे हमारा समाज या कोर्इ संस्थान उन्हें चापलूसी का पद क्यों नहीं देता उनके अधिकारों से उन्हें क्यों वंचित किया जाता है। सही बात तो यह है बंधुओं की अगर ऐसे लोगों का किसी संस्थान में कोई पद हो भी तो पता है क्या स्तिथि होगी। ऐसा होने पर इनसे लोग दूर भागने लगेंगे, उनके आते ही मुंह पर उंगली रख ली जाया करेगी कि कहीं साहब का चापलूस सुन न ले। दूसरी बात यह कि किसी भी संस्थान में ऐसे व्यक्ति को पद मिलने के बाद ही इस पद की प्राप्ति हो पाती है। वह यह देख लेता है कि संस्थान में किसका सिक्का ज्यादा चलता है, इतना पता चलते ही वह उक्त साहब के लिए जी-तोड़ मस्का मजदूरी करने लगता है।
     राजनीति का क्षेत्र हो या फिल्मी दुनिया की चकाचौंध, कैसा भी बड़ा अथावा छोटा संस्थान हो चापलूसों से आप बच नहीं सकते। यह आपको हर क्षेत्र में बिना ढूंढे ही मिल सकते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने शिकार को खुद ही तलाश लेता है। बहरहाल मित्रों, जिस दिन इस चापलूसी का अंत होगा, मैं इसका शोक जरूर मनाऊंगा।

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

आओ संकल्प लें नशामुक्ति का

राब को कहें "ना"  

आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय युवाओं में बढ़ रही नशाखोरी की प्रवृत्ति है। आज हमें ये नज़ारा किसी भी स्कूल के बाहर देखने को आसानी से मिल सकता है कि कम उम्र के किशोर बच्चे सिगरेट पीते, तम्बाकू मिश्रित पान मासाल खाकर किस तरह खुद को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं बच्चों को घरों में माता-पिता से समय के अभाव के कारण बात करने का मौका नहीं मिलता और स्कूलों में पढ़ाई का बोझ किसी को भी इस ओर सोचने की फुर्सत ही नहीं देता। भारी-भरकम पढाई का दबाव, परीक्षा, अंकों और डिवीजन की दौड़ में चाहे-अनचाहे व्यक्तित्व के विकास की बहुत सी समस्याएं अनसुलझी रह जाती हैं। यह दबाव निराशा, भावनात्मक कमजोरियों, अपराधों के रूप में फूटता है जिसकी वजह से युवाओं में नशाखोरी, आत्महत्या जैसे अपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं। कुछ किशोर और युवा तो इनका सेवन सिर्फ इसलिए करना सीख जाते हैं क्योंकि उनके दोस्त नशे के आदि हैं
          आज के माहौल में शराब, तम्बाकू इत्यादि का प्रचलन बढ़ गया है। नशा करना आज के दौर में ऊँची हैसियत व विलासिता दर्शाने का प्रतीक बन गया है। नई पीढ़ी का मानव दिखावे मात्र के लिए इनका सेवन आरम्भ करता है पर अंतत: इनका दास बन जाता है। नशे का सेवन करने मात्र से एक ओर यह हमारी जेब पर तो असर डालता ही है दूसरी ओर यह वस्तुएं व्यक्ति को शारीरिक रूप से जर्जर करने के साथ उनकी मानसिकता पर भी विपरीत प्रभाव डालती हैं। इनका सेवन करने वाला व्यक्ति भयावह बीमारियों कि जकड़ में आने के साथ साथ कुंठित मानसिकता, कमजोर इच्छाशक्ति व नकारात्मक सोच से त्रस्त रहता है। शराब पीने से दिल की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। शराब का सेवन ब्लड प्रेशर बढ़ाने और मोटापे के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए शराब से परहेज रखें। इनके प्रभाव में आने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य तथा सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह नितांत आवश्य हो जाता है कि व्यक्ति ना सिर्फ इनसे बल्कि इनके प्रभाव से भी बचने कि कोशिश करे। एक शिक्षक, अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि यह और विकराल रूप ले, इसे ख़त्म करने में पहल करनी चाहिए।
          ब्रितानी शोधकर्ताओं के अनुसार शराब अल्कोहल हेरोइन और क्रेक कोकीन जैसे मादक पदार्थों से भी कहीं ज्यादा नुकसानदेह है। इंडीपेंडेंट साइंटिफिक कमेटी आन ड्रग्स (आईएससीडी) के अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने दोनों तरह के नशे के खतरों पर गौर किया और पाया कि सामाजिक कारकों के लिहाज से अल्कोहल सबसे ज्यादा खतरनाक है. यह निष्कर्ष लंबे समय से चली आ रही इस धारणा के विपरीत है कि मादक पदार्थ सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि मादक पदार्थोंकी मौजूदा संरचना से नुकसान पहुंच सकने के बहुत कम प्रमाण मिलते हैं। 
         न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंस के डॉक्टर डॉन सवाजे के अनुसार गर्भावस्था के दौरान शराब पीने से होने वाले बच्चों को मिरगी की समस्या तो हो ही सकती है साथ ही और भी कई तरह की समस्या हो सकती है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, शोधकर्त्ताओं और डॉक्टरों का मानना है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शराब से दूर रहना चाहिए।
          शराब की बिक्री से सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन वही सरकार यह भी तो सोचे कि इस शराब ने कितने घर बरबाद कर दिए हैं। शराब ने हमारे कई नौजवानों को आज बरबादी की ओर धकेल दिया है। शराब की लत लगने पर शराब के लिए इंसान घर के गहने, बर्तन तक बेच देता है। पूरे घर को बरबादी की ओर धकेल देता है। राज्य का विकास राज्य के नौजवानों से व राज्य की जनता के विकास से होता है। शराब इंसान की उन्नति की बाधक है। फिर ऐसे में राज्य प्रगति कैसे कर सकता है।
दस वर्षों से नशामुक्त है मोहनगांव
         एक समाचार पत्र के अनुसार शराब की सामाजिक बुराई के खिलाफ छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के ग्राम मोहगांव ने देश और दुनिया के सामने एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। नशा बंदी की दृष्टि से मोहगांव छत्तीसगढ़ का एक आदर्श गांव साबित हो रहा है। लगभग दस साल पहले वहां शराब के कारण अक्सर होने वाले लड़ाई-झगड़ों से तंग आकर गांव के लोग स्व-प्रेरणा से संगठित हुए और पूरे गांव में नशा बंदी लागू करने का निर्णय लिया।
           उनका यह फैसला आज दस साल बाद भी पूरी कामयाबी के साथ कायम है। अब वहां सामाजिक सद्भावना के साथ सुख-शांति का वातावरण है। लगभग आठ सौ की आबादी वाला मोहगांव विकासखंड बम्हनीडीह के अन्तर्गत ग्राम पंचायत झर्रा का आश्रित गांव है। ग्राम पंचायत झर्रा के सरपंच श्री चन्द्रमणि सूर्यवंशी ने अनुसार गांव में शराब के अलावा बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा जैसे नशीले पदार्थों पर भी ग्रामीणों ने स्वयं होकर पाबंदी लगा रखी है।            कुछ वर्ष पहले तक गांव में किसी भी प्रकार की नशा खोरी करके आने वाले व्यक्तियों पर सामाजिक जुर्माना लगाया जाता था, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ती। गांव के लोग स्वयं नशे से दूर रहते हैं और दूसरों को भी इसकी नसीहत देते हैं। वे अपने जवान होते बच्चों को भी नशे की बुराईयों और उसके दुष्परिणामों की जानकारी देकर इससे बचे रहने की सलाह देते हैं। नई पीढ़ी भी अपने बड़े-बुजुर्गों की सलाह पर गंभीरता से अमल कर रही है। सरपंच श्री सूयर्वंशी ने यह भी बताया कि मोहगांव के लोगों से प्रेरण् लेकर ग्राम पंचायत झिर्रा के अन्य आश्रित गांवों के लोग भी शराब बंदी और नशाबंदी के लिए संगठित हो रहे हैं। बहुत जल्द सम्पूर्ण ग्राम पंचायत को नशामुक्त ग्राम पंचायत के रूप में एक नई पहचान मिलगी।
     
                                                                                                                                     जारी है ...............

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

पैरेंट्स का आशीर्वाद यानी आल द बेस्ट!


हमारा समाज आज भी पुरानी मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ा है। हम वातावरण, कपड़ों और कॅरिअर के नजरिए से आधुनिक जरूर हुए हैं, पर सोच अभी भी पूरी तरह से नहीं बदली है। सपने देखने में कोई बुराई नहीं, पर असल जिंदगी में उनका शत-प्रतिशत सही होना मुश्किल होता है। रिश्ता बनाने से पहले अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करना आवश्यक होता है। अगर 50 प्रतिशत युवा प्रेम विवाह के पक्ष में हैं, तो 50 प्रतिशत पारिवारिक सहमति से नियोजित विवाह करना चाहते हैं। आइडियल कोई नहीं होता, भले ही आप प्रेम करके शादी करें पर रिश्तों की असलियत धीरे-धीरे ही सामने आती है। दरअसल, शादी दो जिंदगियों के मेल से जुड़ा यक्ष प्रश्न है। अब शादी तो करनी ही है पर कौन सी वाली करें? यानी लव मैरिज (प्रेम विवाह) या अरेंज मैरिज (नियोजित विवाह) करें। मॉडर्न ख्यालों से सराबोर 21वीं सदी की पीढ़ी आज भी लव कम अरेंज मैरिज के कांसेप्ट में रुचि ले रही है। अरेंज मैरिज एक ऐसा मंच है जहां दो लोगों, परिवारों को आमने-सामने आकर एक-दूसरे को जानने, समझने और परखने के बाद संबंधों को जोड़ने का अवसर मिलता है।
जिस तरह प्रेम विवाह में आप पहले से एक दूसरे को जानते हैं, वैसा ही मौका आपको नियोजित विवाह में भी मिलता है।
         प्रेम संबंध एक ऐसा संबंध है जिसमें आपकी भावनाओं की कद्र हो। पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास की नींव पर टिका होता है। जब यह विश्वास संशय में बदल जाता है तब वैवाहिक जीवन पर संकट के बादल गहराने लगते हैं। इस स्थिति से कैसा उबरा जाये इस प्रश्न का उत्तर हमें तलाशना चाहिए।
अनुशासन बनाए रखने का माध्यम
           प्राचीन काल में विवाह समाज में अनुशासन तथा व्यवस्था बनाये रखने का माध्यम रहा है।  नियोजित विवाह पद्धति के बिना समाज मुक्त यौन संबंधों की अराजकता में भटक गया होता। नियोजित विवाह का स्वरूप, प्रकृति एवं क्रिया विधि विभिन्न समाजों में एक प्रकार की नहीं होतीं। एडवर्ड वैस्टरमार्क के अनुसार विवाह का अर्थ नियमों तथा रीति-रिवाजों के संयोजन से है, अर्थात किसका विवाह किससे किस विधि एवं किस परिस्थिति में होगा। विवाह होने के बाद दांपत्य में बंधने वाले स्त्री-पुरुष के अधिकार एवं कर्त्तव्य किस प्रकार के तथा कैसे होंगे साथ ही आपस में अनबन हो जाने पर वह किस प्रकार अलग हो सकते हैं। नियोजित विवाह स्त्री-पुरुष का सामाजिक दृष्टि से स्वीकार किया गया तथा मूल्यों की दृष्टि से वांछनीय बंधन है। इस सूत्र में बंधने के बाद यह तय हो जाता है कि विवाहोपरांत पति-पत्नी बने दोनों पक्षों में यौन, आर्थिक अधिकारों का आदान-प्रदान नाजायज नहीं।
            इसके विपरीत आज की युवा पीढ़ी विवाह को मात्र वासना प्रधान प्रेम का रंग दे रही है। रंग, रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण को पति-पत्नि के चुनाव में प्रेम विवाह कर प्रधानता दी जाने लगी है, यह प्रवृत्ति बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । यदि लोग इसी तरह सोचते रहे, तो दाम्पत्य-जीवन शरीर प्रधान रहने से एक प्रकार के वैध-व्यभिचार का ही रूप धारण कर लेगा। पाश्चात्य जैसी स्थिति भारत में भी आ जायेगी। शारीरिक आकषर्ण की न्यूनाधिकता का अवसर सामने आने पर विवाह जल्दी-जल्दी टूटते-बनते रहेंगे। आज का युवा पत्नी का चुनाव शारीरिक आकषर्ण को ध्यान में रखकर  ही करता है। अगर प्रेम विवाह कर भी लिया जाए तो मात्र आकर्षण के बलबूते दांपत्य जीवन लंबे समय तक नहीं चल पाता। कुछ लोग परिवारजनों से बगावत कर अलग दुनिया बसाने का रंगीन सपना संजो लेते हैं। लेकिन जब यही आकर्षण कम हो जाता है और पारिवारिक जिम्मेदारियां समझ में आती हैं तब स्थिति बदल जाती है यानि प्रेम विवाह के दुष्परिणाम सामने आते हैं। अब ऐसे में सिवाए पछताने के और कोई विकल्प नहीं होता।
           समय रहते इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए और शारीरिक आकषर्ण की उपेक्षा कर सद्गुणों तथा सद्भावनाओं को ही विवाह का आधार पूवर्काल की तरह बने रहने देना चाहिए। शरीर का नहीं आत्मा का सौन्दयर् देखा जाए और साथी में जो कमी है, उसे प्रेम, सहिष्णुता, आत्मीयता एवं विश्वास की छाया में जितना सम्भव हो सके, सुधारना चाहिए, जो सुधार न हो सके, उसे बिना असन्तोष लाये सहन करना चाहिए। इस रीति-नीति पर दाम्पत्य जीवन की सफलता निर्भर है। अत: दोनों पक्षों को एक-दूसरे से आकषर्ण लाभ मिलने की बात न सोचकर एक-दूसरे के प्रति आत्म-समपर्ण करने और सम्मिलित शक्ति उत्पन्न करने, उसके जीवन विकास की सम्भावनाएँ उत्पन्न करने की बात सोचनी चाहिए। चुनाव करते समय तक साथी को पसन्द करने न करने की छूट है।  जो कुछ देखना, ढूँढ़ना, परखना हो, वह कार्य विवाह से पूर्व ही समाप्त कर लेना चाहिए। जब विवाह हो गया, तो फिर यह कहने की गुंजाइश नहीं रहती कि भूल हो गई, इसलिए साथी की उपेक्षा की जाए। जिस प्रकार के भी गुण-दोष युक्त साथी के साथ विवाह बन्धन में बँधें, उसे अपनी ओर से कर्त्तव्यपालन समझकर पूरा करना ही एक मात्र मार्ग रह जाता है। इसी के लिए विवाह संस्कार का आयोजन किया जाता है। समाज के सम्भ्रान्त व्यक्तियों की, गुरुजनों की, कुटुम्बी-सम्बन्धियों की, देवताओं की उपस्थिति इसीलिए इस धर्मानुष्ठान के अवसर पर आवश्यक मानी जाती है कि दोनों में से कोई इस कत्तर्व्य-बन्धन की उपेक्षा करे, तो उसे रोकें और प्रताड़ित करें। पति-पत्नी इन सन्भ्रान्त व्यक्तियों के सम्मुख अपने विश्वास और सफल   जीवन व्यतीत करने की घोषणा करते हैं। यह प्रतिज्ञा समारोह ही विवाह संस्कार है। उन्हें बताया जाता है कि कोई किसी पर न तो हुकूमत जमायेगा और न अपने दुर्व्यवहार रखकर अपने लाभ या अहंकार की पूर्ति करना चाहेगा। वरन् वह करेगा, जिससे साथी को सुविधा मिलती हो।  दोनों अपनी इच्छा आवश्कता को गौण और साथी की आवश्यकता को मुख्य मानकर सेवा और सहायता का भाव रखेंगे, उदारता एवं सहिष्णुता बरतेंगे, तभी गृहस्थी का रथ ठीक तरह आगे बढ़ेगा।  इस तथ्य को दोनों भली प्रकार हृदयंगम कर लें और इसी रीति-नीति को आजीवन अपनाये रहने का व्रत धारण करें, इसी प्रयोजन के लिए यह पुण्य-संस्कार आयोजित किया जाता है। इस बात को दोनों भली प्रकार समझ लें और सच्चे मन से स्वीकार कर लें, तो ही विवाह-बन्धन में बँधें। विवाह संस्कार आरम्भ करने से पूर्व या विवाह वेदी पर बिठाकर दोनों को यह तथ्य भली प्रकार समझा दिया जाए और उनकी सहमति माँगी जाए।  यदि दोनों इन आदर्शों को अपनाये रहने की हार्दिक सहमति-स्वीकृति दें, तो ही विवाह संस्कार आगे बढ़ाया जाए ।
माता-पिता पर रखें विश्वास
बचपन से बडेÞ होने तक माता-पिता हर तरह की जिम्मेदारी निभाते हैं। इसलिए शायद यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है कि वे अपने बच्चों की शादी भी अपनी समझदारी और बच्चों की पसंद से करें।
शादी को लेकर लड़के-लड़की के मन में एक इनफिनिट प्रेम होता है। जिसमें सबकी पसंद अक्सर एक जैसी होती है, यानि अच्छा वर, अच्छा घर, अच्छा आचरण, गुड लुकिंग, एजुकेटेड तथा समझदार हो। कहने का तात्पर्य है सब कुछ अच्छा चाहिए। पर जहां अरेंज मैरिज (नियोजित विवाह) की बात आती है, तब शादी के इच्छुक लड़के-लड़कियां माता-पिता की मर्जी से शादी करने में खुद को सुरक्षित पाते हैं। सुरक्षा का आवरण पाते ही, शादी से जुड़ा डर दूर हो जाता है। वे सारी शर्तें माता-पिता को बताकर ‘उनका भावी जीवन साथी कैसा हो’ खुद बेफिक्र हो जाते हैं इसलिए कि उनके माता-पिता उनके भविष्य को लेकर चिंतित व चौकस हैं।
          हमारे समाज में मान्यताओं के अनुसार अरेंज मैरिज सम्मान की ज्यादा हकदार होती है। प्रेम विवाह जैसी मुश्किलें अरेंज मैरिज में नहीं रहतीं। जहां पहले किसी से प्यार होता है फिर अगर घर-परिवार वाले रजामंद न हों तो बैठकर रोते रहो। नियोजित विवाह हमें ऐसे झंझटों से बचाता है। शादी कोई बच्चों का खेल नहीं! आप इस मैदान के नये खिलाड़ी हो सकते हैं पर माता-पिता सब कुछ जानने-पहचानने के बाद ही आपकी शादी करते हैं। अपने बच्चों की शादी को लेकर हर माता-पिता के ढेरों सपने होते हैं। फिर वे किसी गलत व्यक्ति से नाता जोड़कर हम पर भला कैसे थोप सकेंगे। नियोजित विवाह में बकायदा हमारी राय सिर्फ इसलिए ही पूछी जाती है।
          ऐसा नहीं कि हमेशा अरेंज मैरिज ही सफल सिद्ध हो यह भी कभी-कभी आपसी सामजस्य सही न बैठने पर असफल हो जाती है। लेकिन प्रेम विवाह करने के बाद पति-पत्नी में यदि झगड़े बढ़ जाते हैं, चूंकि यह फैसला उनका अपना होता है माता-पिता तथा अन्य परिजनों की इच्छा के खिलाफ किया था इसलिए उनकी इजाजत के बिना ही वह सम्बन्ध विच्छेद भी कर लेते हैं, एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। तब उनके बीच हस्तक्षेप करने वाला कोई नहीं होता। लेकिन पति-पत्नी में यदि सामजस्य बैठ जाता है उन परिस्थितियों में प्रेम विवाह भी सफल सिद्ध होता है।
नियोजित विवाह करने की एक वजह यह भी है कि जैसे हम बच्चों की खुशी माता-पिता के लिए संसार के सब भौतिक सुख-सुविधाओं से बढ़कर होती है, वह हमारी परवरिश में जमीन-आसमान एक कर देते हैं, ठीक उसी तरह माता पिता के लिए इतना योगदान तो हम भी कर सकते हैं। एक खास बात और है कि यदि दो पक्षों की सहमति से हुए नियोजित विवाह में खटपट हो भी जाती है तब  माता-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों के हस्तक्षेप के बाद इस रिश्ते में सुधार हो सकता है।
          ध्यान रखें बच्चों व माता-पिता की सोच का एक स्तर पर मिलना जरूरी है। एक ही लड़का-लड़की को देख कर रिश्ता फाइनल करने की जल्दबाजी न करें, उनके सामने एक-दो आॅप्शन रखें तथा उन्हें आपस में मिलने का मौका जरूर दें।
हिंदू रीति में पणिग्रहण संस्कार
              हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि +वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) निर्वाह करना। पणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन   तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
           हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रम्हचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। हिंदू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है। हिन्दू विवाह में सात प्रकार के विवाह को मान्यता दी जाती है। 
1. ब्रह्म विवाह दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना ब्रह्म विवाह कहलाता है। सामान्यत: इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है।
2. दैव विवाह किसी सेवा कार्य (विशेषत: धार्मिक अनुष्ठान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना दैव विवाह कहलाता है।
3. आर्श विवाह कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यत: गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना अर्श विवाह कहलाता है।
4. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना प्रजापत्य विवाह कहलाता है।
5. गंधर्व विवाह परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना गंधर्व विवाह कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से गंधर्व विवाह किया था. उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम भारत वर्ष बना।
6. असुर विवाह कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना असुर विवाह कहलाता है।
7. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहलाता है।
8. पैशाच विवाह कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

नहीं रही शुद्ध खाद्य पदार्थों की गारंटी


भोजन बना हमारा दुश्म

अधिक मुनाफा कमाने के लिए खाने-पीने की चीजों में मिलावट करना अब आम हो गया है। एक तरफ महंगाई बढ़ रही है और दूसरी ओर मिलावट रहित संतुलित और स्वास्थ्यप्रद भोजन मिल पाना मुश्किल होता जा रहा है।  स्थिति यह हो गयी है कि हम जिस वस्तु को देखते हैं वही नकली या मिलावटी लगती है। आपका भोजन धीमे जहर में बदल रहा है। फलों से सब्जियों तक, दूध से लेकर कोल्ड ड्रिंक, घी, खाद्य तेल, आटा, दाल और मसालों से मिठाई तक जो भी आप खा रहे हैं, इसकी पूरी आशंका है कि उसमें जहर है। बाजार से आप जो भी खाद्य पदार्थ खरीदते हैं वे लगभग सभी मिलावटी हैं। भोजन हमारा दुश्मन बन गया है।  शुद्घ खाद्य पदार्थों की कोई गारंटी नहीं रही।
करोड़ों रुपए के मिलावट के कारोबार के पनपने की वजह बेहतर निगरानी प्रणाली का न होना और कुछ  हद तक लोगों का सस्ती चीजों के प्रति झुकाव होना भी है।  दरअसल, मिलावट का धंधा पहले से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त में इसमें निश्चित तौर पर तेजी आई है। पिछले कुछ वक्त में इस तरह के ज्यादा मामले सामने आने की वजह सरकार की सख्ती और महंगाई का बढऩा भी है। हालांकि दैनिक उपभोग में आने वाले पदार्थों की कीमतों में जारी उछाल की वजह से भी इस तरह के कारोबार में पिछले कुछ वक्त में तेजी आई है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं में की जाने वाली मिलावट की जांच सक्षम प्रयोगशाला में ही की जा सकती है और जांच के लिए सक्षम प्रयोगशालाओं का हमारे यहां अभाव है। मिलावट की जांच करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय नहीं रहते। सरकार जनता के हित में विज्ञापन अभियान चलाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जोर-शोर से अभियान चलाकर मिलावटखोरों को पकड़ा जाए और उन्हें त्वरित निर्णय लेर कड़ी सजा दी जाए। इस सजा और सजा पाने वालों के बारे में संचार माध्यमों के द्वारा लोगों को जानकारी भी दी जाए।
खाद्य पदार्थ में मिलावट करने के कारोबार की रफ्तार पकडऩे की वजह पिछले कुछ वक्त से दूध, घी और दूसरी कुछ जरूरी चीजों की सप्लाई में कमी और मांग का ज्यादा होना है।  बिस्कुट और दूसरे उत्पादों में भी मिलावट के मामले सामने आते रहे हैं। मसलन बटर बिस्कुट में घटिया चर्बी मिलाने के मामले सामने आए हैं। इसी तरह से हींग पाउडर में चावल का पाउडर, काली मिर्च पाउडर में गेहूं का आटा,  सूरजमुखी के तेल में सस्ता सोयाबीन का तेल और सरसों में इससे मिलते-जुलते बीज मिलाने का धंधा चल रहा है।
आटा, मावा, घी, दूध, मक्खन, खाद्य तेल, चाय, साबुत व पिसे मसाले, दालें आदि तमाम वस्तुएं ऐसी हैं जिनमें जमकर मिलावट की जाती है। कुछ खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच घर पर ही आसानी से की जा सकती है। 
पीढिय़ों से सोने से पहले एक गिलास दूध पीने की परंपरा चल रही है। आप हमेशा सोचते होंगे कि इससे आपके शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं, किंतु अनेक वर्षों से सुनने में आ रहा है कि दूध में सिंथेटिक तत्वों की मिलावट हो रही है, जिनमें यूरिया, डिटरजेंट और खाद्य तेल शामिल हैं। दूध: पानी मिले दूध का आसानी से पता दूध में उंगली डुबाकर बाहर निकालने से लग जाता है। पक्के फर्श पर दूध की 1-2 बूंदें गिराकर देखें, इससे भी दूध में पानी की मिलावट का अनुमान हो जाता है। सिंथेटिक या नकली दूध की जांच सक्षम प्रयोगशाला में की जा सकती है। वैसे ऐसे दूध को गर्म करने के बाद उसमें कुछ पीलापन दिखाई देने लगता है।
न·ली मावा यानी खोया आए दिन पकड़ा जा रहा है। नकली या सिंथेटिक मावा अपेक्षाकृत अधिक सफेद होता है। हाथ में लेकर उंगलियों और अंगूठे से मसलने पर यह पूरी तरह बिखर जाता है जबकि असली मावा बहुत कम बिखरता है और कुछ रुई की बली जैसा हो जाता है। नकली मावा बनाने के लिए स्वादानुसार दूध पाउडर, आवश्यकता अनुसार चावल का आटा, मिश्रण बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार दूध तथा बने हुए मिश्रण को चिकनाई युक्त बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार रिफाइंड ऑयल मिला दिया जाता है। बने हुए मिश्रण को हल्की आग पर भूनने पर तैयार  हो जाता है नकली मावा।
लाल मिर्च:
 खुली पिसी लाल मिर्च न खरीदें। साबुत लाल मिर्च को चम·दार लाल रंग देने के लिए रोहडमिन बी नाम· रसायन का उपयोग किया जाता है। इसकी जांच करने के लिए पैराफिन द्रव में डुबोया रुई का फाहा मिर्च पर रगडऩे पर यदि फाहा लाल हो जाए तो यानि यहां रसायन मौजूद है।
काली मिर्च:
 पपीते के सूखे बीजों की काली मिर्च में खूब मिलावट की जाती है। एक कांच के गिलास में पानी लेकर उसमें खरीदी हुई काली मिर्च डालें। गिलास में पपीते के बीज पानी के ऊपर तैरने लगेंगे और काली मिर्च नीचे तल में बैठ जाएगी।
देसी घी:
वनस्पति घी की मिलावट देसी घी में खूब की जाती है। साथ ही पशु चर्बी की मिलावट और सिंथेटिक दूध से बने घी के मामले भी कई बार सामने आते हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि जो देसी घी आप खरीद रहे हैं वह मिलावटी हो। अच्छी कीमत अदा करने के बाद भी आपको पोषक तत्व के बजाय जानवरों की चर्बी, हड्डियों का चूरा और खनिज तेल मिलता है। जो लोग देसी घी का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं उनके लिए वनस्पति में भी मिलावट की जा रही है। इसमें स्टेरिन की मिलावट होती है, जो साबुन के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पाम आयल का सह उत्पाद है। हरियाणा के पानीपत से पिछले दिनों खबर आई थी कि वहां से पुलिस ने तीन हजार किलोग्राम मिलावटी घी बरामद किया है। उत्तर प्रदेश के एटा, आगरा सहित कई अन्य शहरों में भी 2009 में प्रशासनिक छापेमार कार्रवाई की गई थी। इन छापेमारी में कई ब्रांडेड कंपनियों के नमूने जांच के लिए लिया गया था। जिनकी जांच प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इस प्रकार की घी उत्पादन की इकाइयां पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में जगह-जगह बिखरी हुई हैं। बाजार में बेचा जाने वाला 90 प्रतिशत वनस्पति घी खाद्य मिलावट रोकथाम अधिनियम की शर्तो का उल्लंघन करता है।
देसी घी की करें घर पर जांच
इसमें मिलावट की जांच के लिए सुनारों द्वारा उपयोग किये जाने वाले हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (नमक का तेजाब) का उपयोग किया जाता है। कांच के बरतन में थोड़ा सा घी लेकर उसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की 3-4 बूंदें और चीनी के कुछ दाने डालें और इसे गर्म करें। बरतन का द्रव हल्के लाल रंग का दिखाई दे तो जान लीजिए कि देसी घी मिलावटी है।
 मिलावट इस हद तक है कि मिठाई में इस्तेमाल होने वाले पिस्ते को भी बख्शा नहीं जा रहा है। मिलावट करने वाले व्यापारी घटिया क्वालिटी के मूंगफली दानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उन्हें रंग देते हैं। सिंथेटिक दूध भी आम है। इस मामले में भी देश का पश्चिमोत्तर भाग मिलावटी दूध और इससे बने उत्पादों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
प्राय: अधिकांश दुकानदार किसी कारण से अपने ग्राहक को खोना नहीं चाहते सो वे खराब या मिलावटी सामान देने से बचते हैं। इसलिए मिलावट से बचने के लिए विश्वसनीय दुकान से ही नियमित रूप से खरीदारी करनी चाहिए। मिलावटी और नकली सामान दुकानदार को अपेक्षाकृत अधिक मुनाफा देता है अत: उसे मिलावटी सामान के बारे में अक्सर पूरी जानकारी होती है। अच्छी गुणवत्ता का सामान खरीदने के लिए उस पर अंकित एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहारी पदार्थ आदि के चिह्न अवश्य देखने चाहिए और ऐसे ही सामान की दुकानदार से मांग करनी चाहिए। सरकार की ओर से भी समय-समय पर उपभोक्तओं  के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाते हैं। मिलावट की शिकायत करने के लिए सम्बन्धित कार्यालयों और अधिकारियों के बारे में जानकारी भी दी जाती है। यदि आपको लगता है कि आपके साथ धोखा हुआ है या किसी खाद्य पदार्थ में मिलावट की आषंका है तो शिकायत की जा सकती है। कोशिश यही करें कि गरम मसाला और हल्दी, मिर्च, धनिया आदि जैसे अन्य मसाले साबुत ही खरीदें। इन्हें आवश्य·तानुसार धो-सुखा·र घर पर ही कूट-पीसकर तैयार करें। इस तरह तैयार किये गये मसाले शुद्घ, ताजा और स्वास्थ्यप्रद होंगे। इस काम में अधिक मेहनत और समय भी जरूरत नहीं, बस जरा आदत बदलने की जरूरत है। अपने स्वास्थ्य की खातिर आज इस बात की अधिक जरूरत है कि मिलावट के प्रति जागरूक रहकर मिलावट से यथासम्भव बचा जाए। वस्तुओं की पैकिंग पर उसके पैक करने और उपयोग की अवधि के बारे में दी गयी जानकारी पढऩे का भी ध्यान रखना चाहिए। खुले मसाले बेचने पर रोक के बावजूद ये धड़ल्ले से बिकते हैं। आप इन्हें न खरीदें। खाद्य सामग्री खरीदते समय उस पर एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहार आदि के मोनोग्राम अवश्य देखें। विभिन्न वस्तुओ के विज्ञापनों में किये गये दावों-वायदों से भ्रमित न हों। एक जागरूक उपभोक्ता बन आवष्यक जांच-परख करें और हर वस्तु की रसीद अवष्य लें।


सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

तकदीर

आती हुई कार से एक नौजवान टकरा गया,
टांग टूटी फिर भी मुस्कुराता देख,
कार वाला घबरा गया.
नौजवान धीरे से बोला-
"प्लीज! मुझे हॉस्पीटल ले चलिए,
मेरी तकदीर खुल जाएगी,
इस साल नहीं तो अगले साल
विकलांग वर्ष में मेरी नौकरी
जरूर लग जाएगी !
मेरी नौकरी
जरूर लग जाएगी !

विकलांग वर्ष और बेरोजगारी

सुबह १० बजे का वक्त था. यह आगरा का वह व्यस्ततम  चौराहा था जहाँ ऑफिस टाइम होने की वजह से ट्रैफिक अपने पूरे यौवन पर होता है. भागमभाग और आपाधापी से भरी जिन्दगी से जूझ रहे राहगीर अपनी धुन में मंजिल की तरफ दौड़े चले जा रहे थे. तेज गति से आते वाहन जोर जोर से होर्न बजा रहे थे. ऐसे शोरगुल के माहौल से मैं भी जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था. तभी सामने से आ रही कार सवार ने मेरे आगे चल रहे युवक को एक जोरदार टक्कर टक्कर मार दी. यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की मैं भी उस युवक को बचने की कोशिश नहीं कर सका था. युवक सड़क पर गिरकर दर्द से तड़पने की बजाये मुस्कुरा रहा था. इस नज़ारे को देखने वाली भीड़ ने कार का रास्ता रोक रखा था. मजबूरीवश कार चालक को गाड़ी से उतरना पड़ा. घायल युवक ने कार वाले की तरफ देखा मुस्कुराते हुए उससे मुखातिब हुआ और कहने लगा "सर प्लीज! मुझे आप अस्पताल तक छोड़ आयें, पिछले कई वर्षों से बेरोजगार था, अब आपने मेरी तंग तोड़कर जो एहसान मुझ पर किया है तो शायद अब मेरी तकदीर जरूर खुल  जाएगी और इस साल नहीं तो अगले साल 'विकलांग वर्ष' में मेरी नौकरी जरूर लग जाएगी."

चापलूसी का शोक

आपने देखा हो या नहीं पर मुझे ऐसा देखने का खासा तजुर्बा है आप कह सकते हैं। कई बार देखने में आता रहता है कि किस तरह साधारण, लक्षणहीन, अनाड़ी तथा असभ्य लोग केवल खुशामद करके कोर्इ बड़ा पद पा लेते हैं। ऐसा नहीं कि इन्होंने इस पद को पाने के लिए कोर्इ कसरत नहीं की। अब सवाल यह उठता है कि जब यह लोग साधारण, लक्षणहीन, अनाड़ी तथा असभ्य है तो फिर कैसे इन्हें गरिमामयी पद की प्राप्ति हो जाती है। मान्यवर, इसके पीछे उनकी चापलूसी करने की प्रतिभा छुपी रहती है।
     चलिए अब आपको विस्तार पूर्वक बतलाते हैं अच्छा चापलूस बनने के लिए किन गुणों का होना खासा महत्व रखता है। वैसे तो चापलूसी की कला काफी प्राचीन है। इसकी शुरुआत कब से शुरू हुई यह बताना मेरे लिए काफी कठिन है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि जब से प्रतिस्पर्धा, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ शुरू हुई होगी तथा बिना कुछ किए सब कुछ पाने की तमन्ना इंसान में जागी होगी तभी से इसका जन्म भी हुआ होगा। जनाब! चापलूसी का मतलब है बड़े साहब को प्रसन्न करने के लिए उनकी झूठी प्रशंसा करना, गलत ही सही पर उनकी हर बात पर वाह-वाह करना, अपने स्वार्थ को साधने के लिए दूसरों का अहित करने के लिए झूठी बातें बनाना, मन में मक्कारी छुपाकर मुस्कराहट और मीठी तथा ज्ञानपूर्ण बातों का प्रयोग करना।
     वर्तमान युग में चापलूसी करने में माहिर होना बहुत जरूरी है। अगर आप किसी को तन की शक्ति से हरा नहीं सकते, अर्थात आप दुर्बल हैं, तो आप चापलूसी का सहारा लेकरआसानी से सामने वाले का तीया-पांचा कर सकते हैं। अपना घर चलाने के लिए यह पात्र किसी भी हद दर्जे की हरकत आपके साथ करने से नहीं चूकेगा। जाने कितने घर मात्र चापलूसी करने से ही चल रहे हैं। डिग्रियों वाले और तुजुर्बेकार मुंह की खाते हैं और चापलूस मजे से मक्खन लगाकर पेट भर रहे हैं।
     चापलूसी की मात्रा पुरुषों में कम और स्त्रियों में अधिक पाई जाती है। क्योंकि यह शब्द स्वयं ही स्त्रीलिंग है। ईश्वर भी चापलूस भक्तों से ही खुश रहता है इसलिए बंधुओं चापलूसों से सदा सावधान रहना ही हितकर होता है। 'कर्म ही प्रधान है, बिना कर्म किए आपको सफलता नहीं मिलेगी' ऐसा सोचना भी अब महापाप है। जनाब! चापलूसी करिए मस्त रहिए। ओशो का कहना है कि ह्यजो व्यक्ति आपसे मीठी-मीठी बातें करे समझ लीजिये वह आपके पेट का रस ले रहा है, बोलचाल में मिठास और जीभ कड़वी होती है। अपनी कमियों को छिपाने के लिए चापलूस व्यक्ति अपने मुंह मियां मिट्ठू बनते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रशंसा द्वारा दूसरे का अपमान बहुत अच्छी तरह कर सकते हैं। चापलूस व्यक्ति किसी का कहीं भी अपमान कर सकते हैं, दूसरों के कार्य की प्रशंसा करना उनके लिए हिमालय से कूदने के बराबर होता है। मात्र दिखावे की बातें बनाना, तारीफ करनी हो तो मुंह पिचका लेते हैं और यदि किसी ने गलत कार्य किया तो ऊंचा ही बोलेंगे ताकि अन्य लोगों में उनका प्रभाव और छवि साफ-सुथरी बनी रहे, कुल मिलाकर दोस्तों ऐसे लोगों का खुद का कोई चरित्र ही नहीं होता। ऐसे व्यक्ति चापलूस होते हुए भी कभी ये मानने को तैयार नहीं होते कि वह चापलूस हैं।
     जब इतनी सारी खूबियों से भरपूर है यह चापलूसी तो फिर इसे हमारा समाज या कोर्इ संस्थान उन्हें चापलूसी का पद क्यों नहीं देता उनके अधिकारों से उन्हें क्यों वंचित किया जाता है। सही बात तो यह है बंधुओं की अगर ऐसे लोगों का किसी संस्थान में कोई पद हो भी तो पता है क्या स्तिथि होगी। ऐसा होने पर इनसे लोग दूर भागने लगेंगे, उनके आते ही मुंह पर उंगली रख ली जाया करेगी कि कहीं साहब का चापलूस सुन न ले। दूसरी बात यह कि किसी भी संस्थान में ऐसे व्यक्ति को पद मिलने के बाद ही इस पद की प्राप्ति हो पाती है। वह यह देख लेता है कि संस्थान में किसका सिक्का ज्यादा चलता है, इतना पता चलते ही वह उक्त साहब के लिए जी-तोड़ मस्का मजदूरी करने लगता है।
     राजनीति का क्षेत्र हो या फिल्मी दुनिया की चकाचौंध, कैसा भी बड़ा अथावा छोटा संस्थान हो चापलूसों से आप बच नहीं सकते। यह आपको हर क्षेत्र में बिना ढूंढे ही मिल सकते हैं। ऐसा व्यक्ति अपने शिकार को खुद ही तलाश लेता है। बहरहाल मित्रों, जिस दिन इस चापलूसी का अंत होगा, मैं इसका शोक जरूर मनाऊंगा।

आओ संकल्प लें नशामुक्ति का

राब को कहें "ना"  

आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय युवाओं में बढ़ रही नशाखोरी की प्रवृत्ति है। आज हमें ये नज़ारा किसी भी स्कूल के बाहर देखने को आसानी से मिल सकता है कि कम उम्र के किशोर बच्चे सिगरेट पीते, तम्बाकू मिश्रित पान मासाल खाकर किस तरह खुद को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं बच्चों को घरों में माता-पिता से समय के अभाव के कारण बात करने का मौका नहीं मिलता और स्कूलों में पढ़ाई का बोझ किसी को भी इस ओर सोचने की फुर्सत ही नहीं देता। भारी-भरकम पढाई का दबाव, परीक्षा, अंकों और डिवीजन की दौड़ में चाहे-अनचाहे व्यक्तित्व के विकास की बहुत सी समस्याएं अनसुलझी रह जाती हैं। यह दबाव निराशा, भावनात्मक कमजोरियों, अपराधों के रूप में फूटता है जिसकी वजह से युवाओं में नशाखोरी, आत्महत्या जैसे अपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं। कुछ किशोर और युवा तो इनका सेवन सिर्फ इसलिए करना सीख जाते हैं क्योंकि उनके दोस्त नशे के आदि हैं
          आज के माहौल में शराब, तम्बाकू इत्यादि का प्रचलन बढ़ गया है। नशा करना आज के दौर में ऊँची हैसियत व विलासिता दर्शाने का प्रतीक बन गया है। नई पीढ़ी का मानव दिखावे मात्र के लिए इनका सेवन आरम्भ करता है पर अंतत: इनका दास बन जाता है। नशे का सेवन करने मात्र से एक ओर यह हमारी जेब पर तो असर डालता ही है दूसरी ओर यह वस्तुएं व्यक्ति को शारीरिक रूप से जर्जर करने के साथ उनकी मानसिकता पर भी विपरीत प्रभाव डालती हैं। इनका सेवन करने वाला व्यक्ति भयावह बीमारियों कि जकड़ में आने के साथ साथ कुंठित मानसिकता, कमजोर इच्छाशक्ति व नकारात्मक सोच से त्रस्त रहता है। शराब पीने से दिल की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। शराब का सेवन ब्लड प्रेशर बढ़ाने और मोटापे के लिए भी जिम्मेदार होता है। इसलिए शराब से परहेज रखें। इनके प्रभाव में आने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य तथा सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होता हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह नितांत आवश्य हो जाता है कि व्यक्ति ना सिर्फ इनसे बल्कि इनके प्रभाव से भी बचने कि कोशिश करे। एक शिक्षक, अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि यह और विकराल रूप ले, इसे ख़त्म करने में पहल करनी चाहिए।
          ब्रितानी शोधकर्ताओं के अनुसार शराब अल्कोहल हेरोइन और क्रेक कोकीन जैसे मादक पदार्थों से भी कहीं ज्यादा नुकसानदेह है। इंडीपेंडेंट साइंटिफिक कमेटी आन ड्रग्स (आईएससीडी) के अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने दोनों तरह के नशे के खतरों पर गौर किया और पाया कि सामाजिक कारकों के लिहाज से अल्कोहल सबसे ज्यादा खतरनाक है. यह निष्कर्ष लंबे समय से चली आ रही इस धारणा के विपरीत है कि मादक पदार्थ सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि मादक पदार्थोंकी मौजूदा संरचना से नुकसान पहुंच सकने के बहुत कम प्रमाण मिलते हैं। 
         न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंस के डॉक्टर डॉन सवाजे के अनुसार गर्भावस्था के दौरान शराब पीने से होने वाले बच्चों को मिरगी की समस्या तो हो ही सकती है साथ ही और भी कई तरह की समस्या हो सकती है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, शोधकर्त्ताओं और डॉक्टरों का मानना है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शराब से दूर रहना चाहिए।
          शराब की बिक्री से सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन वही सरकार यह भी तो सोचे कि इस शराब ने कितने घर बरबाद कर दिए हैं। शराब ने हमारे कई नौजवानों को आज बरबादी की ओर धकेल दिया है। शराब की लत लगने पर शराब के लिए इंसान घर के गहने, बर्तन तक बेच देता है। पूरे घर को बरबादी की ओर धकेल देता है। राज्य का विकास राज्य के नौजवानों से व राज्य की जनता के विकास से होता है। शराब इंसान की उन्नति की बाधक है। फिर ऐसे में राज्य प्रगति कैसे कर सकता है।
दस वर्षों से नशामुक्त है मोहनगांव
         एक समाचार पत्र के अनुसार शराब की सामाजिक बुराई के खिलाफ छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के ग्राम मोहगांव ने देश और दुनिया के सामने एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। नशा बंदी की दृष्टि से मोहगांव छत्तीसगढ़ का एक आदर्श गांव साबित हो रहा है। लगभग दस साल पहले वहां शराब के कारण अक्सर होने वाले लड़ाई-झगड़ों से तंग आकर गांव के लोग स्व-प्रेरणा से संगठित हुए और पूरे गांव में नशा बंदी लागू करने का निर्णय लिया।
           उनका यह फैसला आज दस साल बाद भी पूरी कामयाबी के साथ कायम है। अब वहां सामाजिक सद्भावना के साथ सुख-शांति का वातावरण है। लगभग आठ सौ की आबादी वाला मोहगांव विकासखंड बम्हनीडीह के अन्तर्गत ग्राम पंचायत झर्रा का आश्रित गांव है। ग्राम पंचायत झर्रा के सरपंच श्री चन्द्रमणि सूर्यवंशी ने अनुसार गांव में शराब के अलावा बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा जैसे नशीले पदार्थों पर भी ग्रामीणों ने स्वयं होकर पाबंदी लगा रखी है।            कुछ वर्ष पहले तक गांव में किसी भी प्रकार की नशा खोरी करके आने वाले व्यक्तियों पर सामाजिक जुर्माना लगाया जाता था, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ती। गांव के लोग स्वयं नशे से दूर रहते हैं और दूसरों को भी इसकी नसीहत देते हैं। वे अपने जवान होते बच्चों को भी नशे की बुराईयों और उसके दुष्परिणामों की जानकारी देकर इससे बचे रहने की सलाह देते हैं। नई पीढ़ी भी अपने बड़े-बुजुर्गों की सलाह पर गंभीरता से अमल कर रही है। सरपंच श्री सूयर्वंशी ने यह भी बताया कि मोहगांव के लोगों से प्रेरण् लेकर ग्राम पंचायत झिर्रा के अन्य आश्रित गांवों के लोग भी शराब बंदी और नशाबंदी के लिए संगठित हो रहे हैं। बहुत जल्द सम्पूर्ण ग्राम पंचायत को नशामुक्त ग्राम पंचायत के रूप में एक नई पहचान मिलगी।
     
                                                                                                                                     जारी है ...............

पैरेंट्स का आशीर्वाद यानी आल द बेस्ट!


हमारा समाज आज भी पुरानी मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ा है। हम वातावरण, कपड़ों और कॅरिअर के नजरिए से आधुनिक जरूर हुए हैं, पर सोच अभी भी पूरी तरह से नहीं बदली है। सपने देखने में कोई बुराई नहीं, पर असल जिंदगी में उनका शत-प्रतिशत सही होना मुश्किल होता है। रिश्ता बनाने से पहले अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करना आवश्यक होता है। अगर 50 प्रतिशत युवा प्रेम विवाह के पक्ष में हैं, तो 50 प्रतिशत पारिवारिक सहमति से नियोजित विवाह करना चाहते हैं। आइडियल कोई नहीं होता, भले ही आप प्रेम करके शादी करें पर रिश्तों की असलियत धीरे-धीरे ही सामने आती है। दरअसल, शादी दो जिंदगियों के मेल से जुड़ा यक्ष प्रश्न है। अब शादी तो करनी ही है पर कौन सी वाली करें? यानी लव मैरिज (प्रेम विवाह) या अरेंज मैरिज (नियोजित विवाह) करें। मॉडर्न ख्यालों से सराबोर 21वीं सदी की पीढ़ी आज भी लव कम अरेंज मैरिज के कांसेप्ट में रुचि ले रही है। अरेंज मैरिज एक ऐसा मंच है जहां दो लोगों, परिवारों को आमने-सामने आकर एक-दूसरे को जानने, समझने और परखने के बाद संबंधों को जोड़ने का अवसर मिलता है।
जिस तरह प्रेम विवाह में आप पहले से एक दूसरे को जानते हैं, वैसा ही मौका आपको नियोजित विवाह में भी मिलता है।
         प्रेम संबंध एक ऐसा संबंध है जिसमें आपकी भावनाओं की कद्र हो। पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास की नींव पर टिका होता है। जब यह विश्वास संशय में बदल जाता है तब वैवाहिक जीवन पर संकट के बादल गहराने लगते हैं। इस स्थिति से कैसा उबरा जाये इस प्रश्न का उत्तर हमें तलाशना चाहिए।
अनुशासन बनाए रखने का माध्यम
           प्राचीन काल में विवाह समाज में अनुशासन तथा व्यवस्था बनाये रखने का माध्यम रहा है।  नियोजित विवाह पद्धति के बिना समाज मुक्त यौन संबंधों की अराजकता में भटक गया होता। नियोजित विवाह का स्वरूप, प्रकृति एवं क्रिया विधि विभिन्न समाजों में एक प्रकार की नहीं होतीं। एडवर्ड वैस्टरमार्क के अनुसार विवाह का अर्थ नियमों तथा रीति-रिवाजों के संयोजन से है, अर्थात किसका विवाह किससे किस विधि एवं किस परिस्थिति में होगा। विवाह होने के बाद दांपत्य में बंधने वाले स्त्री-पुरुष के अधिकार एवं कर्त्तव्य किस प्रकार के तथा कैसे होंगे साथ ही आपस में अनबन हो जाने पर वह किस प्रकार अलग हो सकते हैं। नियोजित विवाह स्त्री-पुरुष का सामाजिक दृष्टि से स्वीकार किया गया तथा मूल्यों की दृष्टि से वांछनीय बंधन है। इस सूत्र में बंधने के बाद यह तय हो जाता है कि विवाहोपरांत पति-पत्नी बने दोनों पक्षों में यौन, आर्थिक अधिकारों का आदान-प्रदान नाजायज नहीं।
            इसके विपरीत आज की युवा पीढ़ी विवाह को मात्र वासना प्रधान प्रेम का रंग दे रही है। रंग, रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण को पति-पत्नि के चुनाव में प्रेम विवाह कर प्रधानता दी जाने लगी है, यह प्रवृत्ति बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । यदि लोग इसी तरह सोचते रहे, तो दाम्पत्य-जीवन शरीर प्रधान रहने से एक प्रकार के वैध-व्यभिचार का ही रूप धारण कर लेगा। पाश्चात्य जैसी स्थिति भारत में भी आ जायेगी। शारीरिक आकषर्ण की न्यूनाधिकता का अवसर सामने आने पर विवाह जल्दी-जल्दी टूटते-बनते रहेंगे। आज का युवा पत्नी का चुनाव शारीरिक आकषर्ण को ध्यान में रखकर  ही करता है। अगर प्रेम विवाह कर भी लिया जाए तो मात्र आकर्षण के बलबूते दांपत्य जीवन लंबे समय तक नहीं चल पाता। कुछ लोग परिवारजनों से बगावत कर अलग दुनिया बसाने का रंगीन सपना संजो लेते हैं। लेकिन जब यही आकर्षण कम हो जाता है और पारिवारिक जिम्मेदारियां समझ में आती हैं तब स्थिति बदल जाती है यानि प्रेम विवाह के दुष्परिणाम सामने आते हैं। अब ऐसे में सिवाए पछताने के और कोई विकल्प नहीं होता।
           समय रहते इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए और शारीरिक आकषर्ण की उपेक्षा कर सद्गुणों तथा सद्भावनाओं को ही विवाह का आधार पूवर्काल की तरह बने रहने देना चाहिए। शरीर का नहीं आत्मा का सौन्दयर् देखा जाए और साथी में जो कमी है, उसे प्रेम, सहिष्णुता, आत्मीयता एवं विश्वास की छाया में जितना सम्भव हो सके, सुधारना चाहिए, जो सुधार न हो सके, उसे बिना असन्तोष लाये सहन करना चाहिए। इस रीति-नीति पर दाम्पत्य जीवन की सफलता निर्भर है। अत: दोनों पक्षों को एक-दूसरे से आकषर्ण लाभ मिलने की बात न सोचकर एक-दूसरे के प्रति आत्म-समपर्ण करने और सम्मिलित शक्ति उत्पन्न करने, उसके जीवन विकास की सम्भावनाएँ उत्पन्न करने की बात सोचनी चाहिए। चुनाव करते समय तक साथी को पसन्द करने न करने की छूट है।  जो कुछ देखना, ढूँढ़ना, परखना हो, वह कार्य विवाह से पूर्व ही समाप्त कर लेना चाहिए। जब विवाह हो गया, तो फिर यह कहने की गुंजाइश नहीं रहती कि भूल हो गई, इसलिए साथी की उपेक्षा की जाए। जिस प्रकार के भी गुण-दोष युक्त साथी के साथ विवाह बन्धन में बँधें, उसे अपनी ओर से कर्त्तव्यपालन समझकर पूरा करना ही एक मात्र मार्ग रह जाता है। इसी के लिए विवाह संस्कार का आयोजन किया जाता है। समाज के सम्भ्रान्त व्यक्तियों की, गुरुजनों की, कुटुम्बी-सम्बन्धियों की, देवताओं की उपस्थिति इसीलिए इस धर्मानुष्ठान के अवसर पर आवश्यक मानी जाती है कि दोनों में से कोई इस कत्तर्व्य-बन्धन की उपेक्षा करे, तो उसे रोकें और प्रताड़ित करें। पति-पत्नी इन सन्भ्रान्त व्यक्तियों के सम्मुख अपने विश्वास और सफल   जीवन व्यतीत करने की घोषणा करते हैं। यह प्रतिज्ञा समारोह ही विवाह संस्कार है। उन्हें बताया जाता है कि कोई किसी पर न तो हुकूमत जमायेगा और न अपने दुर्व्यवहार रखकर अपने लाभ या अहंकार की पूर्ति करना चाहेगा। वरन् वह करेगा, जिससे साथी को सुविधा मिलती हो।  दोनों अपनी इच्छा आवश्कता को गौण और साथी की आवश्यकता को मुख्य मानकर सेवा और सहायता का भाव रखेंगे, उदारता एवं सहिष्णुता बरतेंगे, तभी गृहस्थी का रथ ठीक तरह आगे बढ़ेगा।  इस तथ्य को दोनों भली प्रकार हृदयंगम कर लें और इसी रीति-नीति को आजीवन अपनाये रहने का व्रत धारण करें, इसी प्रयोजन के लिए यह पुण्य-संस्कार आयोजित किया जाता है। इस बात को दोनों भली प्रकार समझ लें और सच्चे मन से स्वीकार कर लें, तो ही विवाह-बन्धन में बँधें। विवाह संस्कार आरम्भ करने से पूर्व या विवाह वेदी पर बिठाकर दोनों को यह तथ्य भली प्रकार समझा दिया जाए और उनकी सहमति माँगी जाए।  यदि दोनों इन आदर्शों को अपनाये रहने की हार्दिक सहमति-स्वीकृति दें, तो ही विवाह संस्कार आगे बढ़ाया जाए ।
माता-पिता पर रखें विश्वास
बचपन से बडेÞ होने तक माता-पिता हर तरह की जिम्मेदारी निभाते हैं। इसलिए शायद यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है कि वे अपने बच्चों की शादी भी अपनी समझदारी और बच्चों की पसंद से करें।
शादी को लेकर लड़के-लड़की के मन में एक इनफिनिट प्रेम होता है। जिसमें सबकी पसंद अक्सर एक जैसी होती है, यानि अच्छा वर, अच्छा घर, अच्छा आचरण, गुड लुकिंग, एजुकेटेड तथा समझदार हो। कहने का तात्पर्य है सब कुछ अच्छा चाहिए। पर जहां अरेंज मैरिज (नियोजित विवाह) की बात आती है, तब शादी के इच्छुक लड़के-लड़कियां माता-पिता की मर्जी से शादी करने में खुद को सुरक्षित पाते हैं। सुरक्षा का आवरण पाते ही, शादी से जुड़ा डर दूर हो जाता है। वे सारी शर्तें माता-पिता को बताकर ‘उनका भावी जीवन साथी कैसा हो’ खुद बेफिक्र हो जाते हैं इसलिए कि उनके माता-पिता उनके भविष्य को लेकर चिंतित व चौकस हैं।
          हमारे समाज में मान्यताओं के अनुसार अरेंज मैरिज सम्मान की ज्यादा हकदार होती है। प्रेम विवाह जैसी मुश्किलें अरेंज मैरिज में नहीं रहतीं। जहां पहले किसी से प्यार होता है फिर अगर घर-परिवार वाले रजामंद न हों तो बैठकर रोते रहो। नियोजित विवाह हमें ऐसे झंझटों से बचाता है। शादी कोई बच्चों का खेल नहीं! आप इस मैदान के नये खिलाड़ी हो सकते हैं पर माता-पिता सब कुछ जानने-पहचानने के बाद ही आपकी शादी करते हैं। अपने बच्चों की शादी को लेकर हर माता-पिता के ढेरों सपने होते हैं। फिर वे किसी गलत व्यक्ति से नाता जोड़कर हम पर भला कैसे थोप सकेंगे। नियोजित विवाह में बकायदा हमारी राय सिर्फ इसलिए ही पूछी जाती है।
          ऐसा नहीं कि हमेशा अरेंज मैरिज ही सफल सिद्ध हो यह भी कभी-कभी आपसी सामजस्य सही न बैठने पर असफल हो जाती है। लेकिन प्रेम विवाह करने के बाद पति-पत्नी में यदि झगड़े बढ़ जाते हैं, चूंकि यह फैसला उनका अपना होता है माता-पिता तथा अन्य परिजनों की इच्छा के खिलाफ किया था इसलिए उनकी इजाजत के बिना ही वह सम्बन्ध विच्छेद भी कर लेते हैं, एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। तब उनके बीच हस्तक्षेप करने वाला कोई नहीं होता। लेकिन पति-पत्नी में यदि सामजस्य बैठ जाता है उन परिस्थितियों में प्रेम विवाह भी सफल सिद्ध होता है।
नियोजित विवाह करने की एक वजह यह भी है कि जैसे हम बच्चों की खुशी माता-पिता के लिए संसार के सब भौतिक सुख-सुविधाओं से बढ़कर होती है, वह हमारी परवरिश में जमीन-आसमान एक कर देते हैं, ठीक उसी तरह माता पिता के लिए इतना योगदान तो हम भी कर सकते हैं। एक खास बात और है कि यदि दो पक्षों की सहमति से हुए नियोजित विवाह में खटपट हो भी जाती है तब  माता-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों के हस्तक्षेप के बाद इस रिश्ते में सुधार हो सकता है।
          ध्यान रखें बच्चों व माता-पिता की सोच का एक स्तर पर मिलना जरूरी है। एक ही लड़का-लड़की को देख कर रिश्ता फाइनल करने की जल्दबाजी न करें, उनके सामने एक-दो आॅप्शन रखें तथा उन्हें आपस में मिलने का मौका जरूर दें।
हिंदू रीति में पणिग्रहण संस्कार
              हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि +वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) निर्वाह करना। पणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे कि किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे ले कर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन   तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
           हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों (ब्रम्हचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम) में विभक्त किया गया है और गृहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है। हिंदू विवाह में शारीरिक संम्बंध केवल वंश वृद्धि के उद्देश्य से ही होता है। हिन्दू विवाह में सात प्रकार के विवाह को मान्यता दी जाती है। 
1. ब्रह्म विवाह दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर देना ब्रह्म विवाह कहलाता है। सामान्यत: इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है।
2. दैव विवाह किसी सेवा कार्य (विशेषत: धार्मिक अनुष्ठान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना दैव विवाह कहलाता है।
3. आर्श विवाह कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यत: गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना अर्श विवाह कहलाता है।
4. प्रजापत्य विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना प्रजापत्य विवाह कहलाता है।
5. गंधर्व विवाह परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना गंधर्व विवाह कहलाता है। दुष्यंत ने शकुन्तला से गंधर्व विवाह किया था. उनके पुत्र भरत के नाम से ही हमारे देश का नाम भारत वर्ष बना।
6. असुर विवाह कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना असुर विवाह कहलाता है।
7. राक्षस विवाह
कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहलाता है।
8. पैशाच विवाह कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है।

नहीं रही शुद्ध खाद्य पदार्थों की गारंटी


भोजन बना हमारा दुश्म

अधिक मुनाफा कमाने के लिए खाने-पीने की चीजों में मिलावट करना अब आम हो गया है। एक तरफ महंगाई बढ़ रही है और दूसरी ओर मिलावट रहित संतुलित और स्वास्थ्यप्रद भोजन मिल पाना मुश्किल होता जा रहा है।  स्थिति यह हो गयी है कि हम जिस वस्तु को देखते हैं वही नकली या मिलावटी लगती है। आपका भोजन धीमे जहर में बदल रहा है। फलों से सब्जियों तक, दूध से लेकर कोल्ड ड्रिंक, घी, खाद्य तेल, आटा, दाल और मसालों से मिठाई तक जो भी आप खा रहे हैं, इसकी पूरी आशंका है कि उसमें जहर है। बाजार से आप जो भी खाद्य पदार्थ खरीदते हैं वे लगभग सभी मिलावटी हैं। भोजन हमारा दुश्मन बन गया है।  शुद्घ खाद्य पदार्थों की कोई गारंटी नहीं रही।
करोड़ों रुपए के मिलावट के कारोबार के पनपने की वजह बेहतर निगरानी प्रणाली का न होना और कुछ  हद तक लोगों का सस्ती चीजों के प्रति झुकाव होना भी है।  दरअसल, मिलावट का धंधा पहले से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त में इसमें निश्चित तौर पर तेजी आई है। पिछले कुछ वक्त में इस तरह के ज्यादा मामले सामने आने की वजह सरकार की सख्ती और महंगाई का बढऩा भी है। हालांकि दैनिक उपभोग में आने वाले पदार्थों की कीमतों में जारी उछाल की वजह से भी इस तरह के कारोबार में पिछले कुछ वक्त में तेजी आई है। दैनिक उपभोग की वस्तुओं में की जाने वाली मिलावट की जांच सक्षम प्रयोगशाला में ही की जा सकती है और जांच के लिए सक्षम प्रयोगशालाओं का हमारे यहां अभाव है। मिलावट की जांच करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय नहीं रहते। सरकार जनता के हित में विज्ञापन अभियान चलाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेती है। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि जोर-शोर से अभियान चलाकर मिलावटखोरों को पकड़ा जाए और उन्हें त्वरित निर्णय लेर कड़ी सजा दी जाए। इस सजा और सजा पाने वालों के बारे में संचार माध्यमों के द्वारा लोगों को जानकारी भी दी जाए।
खाद्य पदार्थ में मिलावट करने के कारोबार की रफ्तार पकडऩे की वजह पिछले कुछ वक्त से दूध, घी और दूसरी कुछ जरूरी चीजों की सप्लाई में कमी और मांग का ज्यादा होना है।  बिस्कुट और दूसरे उत्पादों में भी मिलावट के मामले सामने आते रहे हैं। मसलन बटर बिस्कुट में घटिया चर्बी मिलाने के मामले सामने आए हैं। इसी तरह से हींग पाउडर में चावल का पाउडर, काली मिर्च पाउडर में गेहूं का आटा,  सूरजमुखी के तेल में सस्ता सोयाबीन का तेल और सरसों में इससे मिलते-जुलते बीज मिलाने का धंधा चल रहा है।
आटा, मावा, घी, दूध, मक्खन, खाद्य तेल, चाय, साबुत व पिसे मसाले, दालें आदि तमाम वस्तुएं ऐसी हैं जिनमें जमकर मिलावट की जाती है। कुछ खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच घर पर ही आसानी से की जा सकती है। 
पीढिय़ों से सोने से पहले एक गिलास दूध पीने की परंपरा चल रही है। आप हमेशा सोचते होंगे कि इससे आपके शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं, किंतु अनेक वर्षों से सुनने में आ रहा है कि दूध में सिंथेटिक तत्वों की मिलावट हो रही है, जिनमें यूरिया, डिटरजेंट और खाद्य तेल शामिल हैं। दूध: पानी मिले दूध का आसानी से पता दूध में उंगली डुबाकर बाहर निकालने से लग जाता है। पक्के फर्श पर दूध की 1-2 बूंदें गिराकर देखें, इससे भी दूध में पानी की मिलावट का अनुमान हो जाता है। सिंथेटिक या नकली दूध की जांच सक्षम प्रयोगशाला में की जा सकती है। वैसे ऐसे दूध को गर्म करने के बाद उसमें कुछ पीलापन दिखाई देने लगता है।
न·ली मावा यानी खोया आए दिन पकड़ा जा रहा है। नकली या सिंथेटिक मावा अपेक्षाकृत अधिक सफेद होता है। हाथ में लेकर उंगलियों और अंगूठे से मसलने पर यह पूरी तरह बिखर जाता है जबकि असली मावा बहुत कम बिखरता है और कुछ रुई की बली जैसा हो जाता है। नकली मावा बनाने के लिए स्वादानुसार दूध पाउडर, आवश्यकता अनुसार चावल का आटा, मिश्रण बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार दूध तथा बने हुए मिश्रण को चिकनाई युक्त बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार रिफाइंड ऑयल मिला दिया जाता है। बने हुए मिश्रण को हल्की आग पर भूनने पर तैयार  हो जाता है नकली मावा।
लाल मिर्च:
 खुली पिसी लाल मिर्च न खरीदें। साबुत लाल मिर्च को चम·दार लाल रंग देने के लिए रोहडमिन बी नाम· रसायन का उपयोग किया जाता है। इसकी जांच करने के लिए पैराफिन द्रव में डुबोया रुई का फाहा मिर्च पर रगडऩे पर यदि फाहा लाल हो जाए तो यानि यहां रसायन मौजूद है।
काली मिर्च:
 पपीते के सूखे बीजों की काली मिर्च में खूब मिलावट की जाती है। एक कांच के गिलास में पानी लेकर उसमें खरीदी हुई काली मिर्च डालें। गिलास में पपीते के बीज पानी के ऊपर तैरने लगेंगे और काली मिर्च नीचे तल में बैठ जाएगी।
देसी घी:
वनस्पति घी की मिलावट देसी घी में खूब की जाती है। साथ ही पशु चर्बी की मिलावट और सिंथेटिक दूध से बने घी के मामले भी कई बार सामने आते हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि जो देसी घी आप खरीद रहे हैं वह मिलावटी हो। अच्छी कीमत अदा करने के बाद भी आपको पोषक तत्व के बजाय जानवरों की चर्बी, हड्डियों का चूरा और खनिज तेल मिलता है। जो लोग देसी घी का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं उनके लिए वनस्पति में भी मिलावट की जा रही है। इसमें स्टेरिन की मिलावट होती है, जो साबुन के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पाम आयल का सह उत्पाद है। हरियाणा के पानीपत से पिछले दिनों खबर आई थी कि वहां से पुलिस ने तीन हजार किलोग्राम मिलावटी घी बरामद किया है। उत्तर प्रदेश के एटा, आगरा सहित कई अन्य शहरों में भी 2009 में प्रशासनिक छापेमार कार्रवाई की गई थी। इन छापेमारी में कई ब्रांडेड कंपनियों के नमूने जांच के लिए लिया गया था। जिनकी जांच प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इस प्रकार की घी उत्पादन की इकाइयां पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में जगह-जगह बिखरी हुई हैं। बाजार में बेचा जाने वाला 90 प्रतिशत वनस्पति घी खाद्य मिलावट रोकथाम अधिनियम की शर्तो का उल्लंघन करता है।
देसी घी की करें घर पर जांच
इसमें मिलावट की जांच के लिए सुनारों द्वारा उपयोग किये जाने वाले हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (नमक का तेजाब) का उपयोग किया जाता है। कांच के बरतन में थोड़ा सा घी लेकर उसमें हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की 3-4 बूंदें और चीनी के कुछ दाने डालें और इसे गर्म करें। बरतन का द्रव हल्के लाल रंग का दिखाई दे तो जान लीजिए कि देसी घी मिलावटी है।
 मिलावट इस हद तक है कि मिठाई में इस्तेमाल होने वाले पिस्ते को भी बख्शा नहीं जा रहा है। मिलावट करने वाले व्यापारी घटिया क्वालिटी के मूंगफली दानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उन्हें रंग देते हैं। सिंथेटिक दूध भी आम है। इस मामले में भी देश का पश्चिमोत्तर भाग मिलावटी दूध और इससे बने उत्पादों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
प्राय: अधिकांश दुकानदार किसी कारण से अपने ग्राहक को खोना नहीं चाहते सो वे खराब या मिलावटी सामान देने से बचते हैं। इसलिए मिलावट से बचने के लिए विश्वसनीय दुकान से ही नियमित रूप से खरीदारी करनी चाहिए। मिलावटी और नकली सामान दुकानदार को अपेक्षाकृत अधिक मुनाफा देता है अत: उसे मिलावटी सामान के बारे में अक्सर पूरी जानकारी होती है। अच्छी गुणवत्ता का सामान खरीदने के लिए उस पर अंकित एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहारी पदार्थ आदि के चिह्न अवश्य देखने चाहिए और ऐसे ही सामान की दुकानदार से मांग करनी चाहिए। सरकार की ओर से भी समय-समय पर उपभोक्तओं  के लिए जागरूकता अभियान चलाये जाते हैं। मिलावट की शिकायत करने के लिए सम्बन्धित कार्यालयों और अधिकारियों के बारे में जानकारी भी दी जाती है। यदि आपको लगता है कि आपके साथ धोखा हुआ है या किसी खाद्य पदार्थ में मिलावट की आषंका है तो शिकायत की जा सकती है। कोशिश यही करें कि गरम मसाला और हल्दी, मिर्च, धनिया आदि जैसे अन्य मसाले साबुत ही खरीदें। इन्हें आवश्य·तानुसार धो-सुखा·र घर पर ही कूट-पीसकर तैयार करें। इस तरह तैयार किये गये मसाले शुद्घ, ताजा और स्वास्थ्यप्रद होंगे। इस काम में अधिक मेहनत और समय भी जरूरत नहीं, बस जरा आदत बदलने की जरूरत है। अपने स्वास्थ्य की खातिर आज इस बात की अधिक जरूरत है कि मिलावट के प्रति जागरूक रहकर मिलावट से यथासम्भव बचा जाए। वस्तुओं की पैकिंग पर उसके पैक करने और उपयोग की अवधि के बारे में दी गयी जानकारी पढऩे का भी ध्यान रखना चाहिए। खुले मसाले बेचने पर रोक के बावजूद ये धड़ल्ले से बिकते हैं। आप इन्हें न खरीदें। खाद्य सामग्री खरीदते समय उस पर एगमार्क, एफपीओ, आईएसआई, शाकाहार आदि के मोनोग्राम अवश्य देखें। विभिन्न वस्तुओ के विज्ञापनों में किये गये दावों-वायदों से भ्रमित न हों। एक जागरूक उपभोक्ता बन आवष्यक जांच-परख करें और हर वस्तु की रसीद अवष्य लें।


तकदीर

आती हुई कार से एक नौजवान टकरा गया,
टांग टूटी फिर भी मुस्कुराता देख,
कार वाला घबरा गया.
नौजवान धीरे से बोला-
"प्लीज! मुझे हॉस्पीटल ले चलिए,
मेरी तकदीर खुल जाएगी,
इस साल नहीं तो अगले साल
विकलांग वर्ष में मेरी नौकरी
जरूर लग जाएगी !
मेरी नौकरी
जरूर लग जाएगी !

विकलांग वर्ष और बेरोजगारी

सुबह १० बजे का वक्त था. यह आगरा का वह व्यस्ततम  चौराहा था जहाँ ऑफिस टाइम होने की वजह से ट्रैफिक अपने पूरे यौवन पर होता है. भागमभाग और आपाधापी से भरी जिन्दगी से जूझ रहे राहगीर अपनी धुन में मंजिल की तरफ दौड़े चले जा रहे थे. तेज गति से आते वाहन जोर जोर से होर्न बजा रहे थे. ऐसे शोरगुल के माहौल से मैं भी जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था. तभी सामने से आ रही कार सवार ने मेरे आगे चल रहे युवक को एक जोरदार टक्कर टक्कर मार दी. यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ की मैं भी उस युवक को बचने की कोशिश नहीं कर सका था. युवक सड़क पर गिरकर दर्द से तड़पने की बजाये मुस्कुरा रहा था. इस नज़ारे को देखने वाली भीड़ ने कार का रास्ता रोक रखा था. मजबूरीवश कार चालक को गाड़ी से उतरना पड़ा. घायल युवक ने कार वाले की तरफ देखा मुस्कुराते हुए उससे मुखातिब हुआ और कहने लगा "सर प्लीज! मुझे आप अस्पताल तक छोड़ आयें, पिछले कई वर्षों से बेरोजगार था, अब आपने मेरी तंग तोड़कर जो एहसान मुझ पर किया है तो शायद अब मेरी तकदीर जरूर खुल  जाएगी और इस साल नहीं तो अगले साल 'विकलांग वर्ष' में मेरी नौकरी जरूर लग जाएगी."